डिप्रेशन: मानसिक वेदना की एक चरम स्थिति ।

 डिप्रेशन। मानसिक वेदना की एक चरम स्थिति है। जहां व्यक्ति अपनी सोच से स्वयं को ही परेशान करने लगता है। अपनी ही टेंशन पर चिंतन करते हुए न जाने कब पी.एचडी कर जाता है उसको खुद मालूम ही नहीं चलता। प्रत्येक स्थिति नकारात्मक लगने लगती है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति खुद को सुबह के माहौल से दूर करने लगता है, और रातें उसको अपनी लगने लगती है। रातों में एक सूनापन है। न पक्षियों की चहचहाट है, न ही प्रकाश की ऐसी स्थितियां है और लोगों के थके चेहरे है। चारों ओर सूनापन धीरे-धीरे घर करने लगता है। जबकि सुबह को देखेंगे तो माहौल अलग है। पक्षियों की चहचहाट, सूर्योदय हो रहा है, प्रत्येक व्यक्ति अपने कामकाज की ओर अग्रसर हो रहा है। माहौल आपको सकारात्मकता देने लगता है। आप उसी सकारात्मक माहौल से धीरे-धीरे स्वयं को दूर करने लगते हैं और दस बजे, ग्यारह बजे कई बार सुबह नौ बजे तक उठता है और उसके बाद में उन्हीं सारी पुनरावृतियों को अपने भीतर दोहराने लगता है जो सिर्फ और सिर्फ टेंशन और डिप्रेशन की ओर लेकर जाने वाली होती है। 

प्रत्येक सोच जब आपको नकारात्मक करने लगे, कुंठाओं के साथ लेकर चलने लगे तो वहां पहला प्रयास यह कीजिये कि लोगों से मिलना-जुलना जो बंद हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के साथ मिलता है, लगता है क्यों मिले, क्यों चर्चा करें ये भी ऐसा ही है। ये अवधारणा धीरे धीरे बनने लगती है। उससे दूर होने की आवश्यकता है। लोगों से जुडऩे की आवश्यकता है। साथ ही प्रयास कीजिये सुबह आठ बजे उठ रहे हैं तो पौने आठ बजे या साढ़े सात बजे उठने का प्रयास करें। सबसे पहले किसी और विचार में खोए बिना प्रकृति की स्थितियां है वहां से स्वयं को जोड़ेंगे ही जोड़ेंगे। आप इस क्रम को दोहराने लगते हैं तो धीरे-धीरे डिप्रेशन की उस अवस्था से बाहर आने लगता है। कोई भी व्यक्ति ऐसे अवसाद का शिकार है। आप उससे चर्चा कीजिये, वो ये कहेगा न तो मुझे सुबह सुबह किसी से मिलना पसंद है, न ही शाम के समय बातचीत करना पसंद है। अकेले रहता हूं, उधेड़बुन के साथ चलता रहता हूं। कामकाज में भी अज्ञात भय खुद को सताने वाले होते हैं। उस अज्ञात भय पर आप सोचते सोचते जो इमेजिनेशन की पोजीशन है उसका इतना नकारात्मक कर देते हैं कि स्वयं के भीतर नया सोचने को कुछ रह ही नहीं जाता है। इस वजह से प्रकृति के साथ जुडऩे का प्रयास कीजिये। 

सुबह-सुबह आप स्वयं को कितना जल्दी की स्थिति में ला सकते हैं, साढ़े सात, सवा सात और फिर सूर्योदय के साथ पक्षियों की चहचहाट के साथ जुड़ते हैं तो भीतर सकारात्मकता आने लगती है। आप बिना किसी दूसरे प्रोसिजर के आप उससे बाहर निकलने लगते हैं। आज के युग में यह बहुत अधिक आवश्यक है। आप स्वयं पुन: ऐसी अवस्थाओं से खुद को बाहर निकाल पाते हैं और जीवन को नई रोशनी दे पाते हैं। जो व्यक्ति ऐसी पोजीशन से घिरा हुआ हूं, लेकिन मुश्किल है तो भी प्रयास करने होंगे। वहीं से आदित्यम हृदयम स्रोत्रम, गायत्री उपासना, सूर्य देव को अघ्र्य के साथ जुड़ते चले जाना या सुबह-सुबह कृष्ण के भजनों के साथ दिन की शुरुआत करने से मन के भीतर के स्पंदन सकारात्मक होने लगेंगे और व्यक्ति अवसाद से बाहर आने लगता है।

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