सोच के दायरे को विकसित करते जायें ।

 एक  पीढ़ी अपने अनुभव बना चुकी होती है, एक पीढ़ी अपने अनुभवों को हासिल करने के लिए जा रही होती है। हम उसी को कम्युनिकेशन गेप या जनेरशन के मध्य होने वाले गेप का नाम दे देते हैं। एक व्यक्ति अठारह बीस वर्ष की उम्र में था, सारे ही अनुभव लिए। जिस दृष्टिकोण से जीवन देखना था, बहुत आजाद होकर वो सारे ही दृष्टिकोण देखे और उसके बाद पचास वर्ष की उम्र में पहुंचकर उसको ये लगने लगता है कि मैंने कहां-कहां गलतियां की, किस-किस तरह से जीवन को निराशाओं के भंवर में थकेला और कहां से मुझे बाउंस बेक करने में जद्दोजहद करनी पड़ी। अब जब उनकी संतान बड़ी हो रही होती है तो वो बारम्बार उन सारे ही विचारों को सामने रखते हैं और उनको ये निर्देश देते हैं कि तुम ये गलती नहीं करना, ये सही है, ये गलत है, ये कार्य करने से ही तुम सफलता प्राप्त करोगे। वो जो व्यक्ति विशेष अभी युवावस्था में है, अठारह से बीस वर्ष की उम्र में है और अनुभव बनाने हैं, वो कैसे पूर्णतया उस व्यक्ति विशेष की बात को स्वीकार कर लेगा। और यहीं से एक गेप आने लगता है। किन्तु वहां जब भी हम समझाइश की स्थिति को बदलकर चलने वाले होते हैं, उन शब्दों के समूह के अंदर कुछ परिवर्तन करके चलने वाले होते हैं वहीं से एक नये दायरे की समझ विकसित होने लगती है। आप जब भी ये कहते हैं कि ये गलत है, और ये सही है। निर्णय सुनाने की ओर जाते हैं, किन्तु जैसे ही व्यक्ति ये कहता है कि मेरे अनुभवों के साथ में मेरा ये मानना है कि ये कार्य इस हिसाब से जब मैंने किया था, वो बहुत बेहतर परिणाम लाया था।

 मेरे दोस्तों की संगत कुछ ऐसी थी, वहां से जीवन की रंगत बदलती चली गई थी। ये एक सोच का दायरा है जो आप देते हैं। अन्यथा सीधा यही कह दें कि ये दोस्त खराब है, ये अच्छे हैं, ये व्यक्ति विशेष बेहतर है, ये कोर्स अच्छा है तो वहीं से एक तरह से निर्णय की स्थिति हमने उनके सामने रखी। हम किसी भी व्यक्ति को अपनी सोच दे सकते हैं, निर्णय की स्थितियां नहीं दे सकते। हम क्या सोच रहे हैं, किसी क्षेत्र विशेष का आधार क्या है, ये लेकर चल सकते हैं। एक किस्सा सुनाता हूं। मैं जब मासिक राशिफल लेता हूं तो सप्तम स्थान पर कुंभ राशि स्थान लिखा हुआ था, उसके साथ जो एक नम्बर था, वो टेढ़ा हो चुका था, मेरे सहयोगी है उन्होंने कहा दूसरा नंबर है उसे घूमा देते हैं। मेरी सोच ये थी जो नंबर टेढ़ा है उसे सीधा कर दिया जाए। वो भी गलत नहीं था मैं भी गलत नहीं था। किन्तु सोच के दायरे अलग थे। दोनों ने मिलकर उस कार्य को श्रेष्ठता के साथ सम्पन्न किया। ये प्रवृतियां अलग-अलग सोच लाएगी, अलग-अलग स्थितियां लाएगी, जब भी हम अपनी आने वाली पीढ़ी कोई निर्णय सुनाने की ओर जाएंगे तो वहां पर एक अलग तरीके का कुंठित अधिकार होगा और जब भी हम उनको शब्दों के सिरे के साथ ये बताएंगे कि हमारी सोच है आप अपनी सोच को इसमें जोड़कर क्या कुछ नया देख सकते हैं वहीं से अपने जीवन को और सफल बनाने की ओर आनंदित करने की ओर जाइएगा। यहां पर जीवन एक सिस्टेमेटिक एप्रोच का नाम नहीं है, जीवन प्रयोग का नाम भी नहीं है किन्तु प्रत्येक क्षण अनुभव के साथ आनंद हासिल करने का नाम जीवन जरूर है। 

जब ये सोच निरन्तर तौर पर एक व्यक्ति के भीतर अपनी युवावस्था में होने लगती है तो आप देखिये, चमत्कारिक तौर पर वो अपने जीवन में बदलाव के सहर्ष संकेत लाता है और यहीं से आप अपनी भावी पीढ़ी को सफलता का पहला संकेत दे चुके होते हैं।

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