कल्पना एवं यथार्थ की स्थितियां ।

कल्पनाओं से निकलकर जब कोई भी यात्रा धरातल में प्रवेश करती है तो वहीं से स्पष्टताएं सामने होती है। किसी व्यक्ति ने हमको महीनों पहले कहा था कि कोई भी कार्य हो तो आप हमको याद कीजियेगा। एक छोटा-सा कार्य सामने आता है। हम उस व्यक्ति को कॉल करते हैं। जाकर मिलते हैं। वो स्पष्ट तौर पर मुकर जाता है। वहीं से उस व्यक्ति की बातों में जो कल्पनाएं थी, और आज जो यथार्थ की स्थितियां सामने है वो हमारे सामने स्पष्ट होती चली जाती है। वहीं वर्क फ्रोम होम की स्थिति चल रही है। कोई प्रोजेक्ट सामने आता है जिसकी डेड लाइन दो दिन बाद में है। हम आज का दिन टालते हैं, आज तो आया है कल सुबह देखेंगे, आसानी से कर लेंगे। अभी घर परिवार के साथ इत्मीनान से समय बिताते हैं। सुबह आती है हम सोचते हैं कि शाम तक तो ये कार्य पूर्ण कर ही लेंगे। शाम आती है तो लगता है कि हमारी इस कार्य में दक्षता है सिर्फ 30 से 35 मिनट में कार्य पूर्ण करके आगे मेल कर चुका हूंगा। सुबह आती है डेड लाइन पूर्ण होने को आती है, तब मन में पश्चात्ताप आता है कि हम कार्य को टालते चले गए। ये भी यात्रा कल्पना से लेकर यथार्थ तक की है। 

वर्षों पहले एक व्यापार शुरू करने का सपना संजोया था, कि नौकरी पेशा जीवन से हम एक बैंक बैलेंस क्रियेट करके व्यापार की ओर बढ़ जाएंगे। वर्षों बीत जाते हैं जद्दोजहद हमको ऐसी कल्पनाओं के साथ उलझा कर रखती है कि यथार्थ का धरातल सामने आ ही नहीं पाता। किसी नौकरी पेशा जीवन के अंदर हमको प्रोफाइल चेंज की ओर जाना था, कोई नया हुनर भीतर विकसित करने की आवश्यकता थी, किन्तु सिर्फ कल्पनाओं के अंदर ही हम जीते चले गए, यथार्थ में आकर किसी कोर्स को सीखने की ओर गए ही नहीं। शारीरिक स्वास्थ्य की उपलब्धतता के लिए हमको रेगूलर रुटिन में व्यायाम की शुरुआत करनी थी, बहुत दिनों से मानस स्पष्ट कर चुके थे, कि मार्निंग वाक में जाना है किन्तु सर्द मौसम है, मन के भीतर आता है कि सर्दी के अंदर ऐसी शुरुआत नहीं होती  फिर से कल्पनाओं का तानाबाना बुना और खुद को यथार्थ से दूर करते चले गए। 

जीवन जितना यथार्थ से दूर होता है उतना ही सफलताओं से भी दूर होता चला जाता है। जब भी किसी स्थिति को हम फेस करने की ओर जाएंगे क्या पोजीशन है, क्या एप्रोच है उसकी स्पष्टता जब सामने होगी तब ही हम किसी कार्य में निपुण हो पाते हैं, अन्यथा ऐसे ही कल्पनाएं बुनते चले जाते हैं और यथार्थ से दूर होते चले जाते हैं। जीवन निकल जाता है और आखिरकार खुद को यही कहते हैं कि मौके मेरे पास आए ही नहीं। मौके आए किन्तु हम यथार्थ से इतना दूर होकर अपने जीवन को जी रहे थे कि कल्पनाओं के साथ में ही पूरा जीवन बीत गया। आज से कल, कल से परसों के ऊपर इमेजिनेशन टालती चली जाती है। हम सभी को टालती चली जाती है और मौके हम गंवाते चले जाते हैं। धरातल के साथ में खुद को लेकर चलना और वहीं इमेजिनेशन बहुत हुई अब वर्क की तरफ जाना है इस संकल्प को मन के भीतर लगातार दोहराना ही वास्तविकता के साथ में व्यक्ति को जोडऩे वाला होता है।

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