मन में आत्मीयता का भाव बनाये रखें ।

 आजकल रिश्तों के बारे में भी एक नई परिभाषा सुनाई देती है कि रिश्तों को बचाने की आवश्यकता है। हम अपने कामकाजी जीवन में कई बार यह सुनते हैं कि रिलेशन मेंटन करके रखने होंगे, रखने होंगे, ये एक तरह से मेंडेंट एप्रोच सामने आ गई। जहां आत्यमीता का भाव कम है। कुछ रिश्ते बचपन या युवावस्था में या उसके बाद इतनी सहजता से सामने होते हैं, वो हमेशा साथ चलते चले जाते हैं। वहां हम कैसे जुड़ें, किस तरह से जुड़े। घर परिवार से इतर वो रिश्ते हमारे साथ बने रहे।  दोस्तो का नाम आप ले लीजिये, किसी रिश्ते का नाम ले लीजिये, या फिर और गहराई से आत्मीयता के भाव के साथ में चलते हुए ऐसे किसी भी व्यक्तिगत जीवन का आधार आप नाम दे दीजिये. वो सब कुछ साथ रहते हैं। जैसे उम्र बढ़ती है, तो उसको रिश्तों को बचाने की जद्दोजहद करनी पड़ती है, फिर वही शब्द करनी पड़ती है। 

ऑफिस की मीटिंग में है, खत्म हो चुकी है, किन्तु वहां रुकने की आवश्यकता है, यदि नहीं रुके तो हो सकता है जो बॉस है नाराज हो जाए या फिर हमारे प्रति वहां जब हम नहीं हों तो एक नेगेटिविट लोगों द्वारा परोसी जा सकती है। हम उन रिश्तों को बचाने की चेष्टा भी इसलिए करते हैं कि वो सारी जानकारी मिलती चली जाए जो हमारे लिए कांस्पियरेसी क्रियेट कर सकती है। इसी जद्दोजहद के अंदर मन के भीतर एक फस्र्टेशन घर करने लगती है और हमको घर-परिवार के साथ में समय बिताने की आवश्यकता थी, दोस्तों को साथ रहने की आवश्यकता थी, उस रविवार के दिन भी कामकाज के अंदर प्रजेंस दिखानी पड़ रही है, याद रखा जाए प्रसेंज दिखानी पड़ रही है कोई बात नहीं, किन्तु घर परिवार में आए तो फस्र्टेशन नहीं लाएं, दोस्तों के साथ बोझिल वातावरण नहीं लाएं, सहजता बनाकर रखें। आत्मीयता के भाव के साथ जुडऩे की आवश्यकताएं होनी चाहिए। 

व्यक्ति जब ऐसे सेग्रीगेसन के साथ चलता है, सोच के अंदर कुछ ऐसे रिश्तों जहां बनावटीपन रखना पड़ता है, कोई बात नहीं। किन्तु जब दोस्तों या आत्मीयजनों के साथ हो जहां किसी भी तरह की बनावट की आवश्यकता नहीं है, जहां रिश्तों को बचाने की आवश्यकता नहीं है, वहां बहुत सहजता के साथ रहा जाए, आनंद की अनुभूति के साथ चलना चाहिए। ये दो फ्रेम है जिसको समझने की आवश्यकता रहती है। जब भी हम अपनी आत्मीयता के साथ यदि ऑफिस कल्चर में लोगों से जुड़ जाते हैं, वहां से भी रिश्तों को बचाने की जद्दोजहद खत्म हो जाती है। 

जब हम प्लास्टिक स्माइल के साथ चलेंगे तो स्थितियां अलग है, किन्तु जैसे ही सहज भाव के साथ चलने की शुरुआत करते हैं तो स्थितियां अलग हो जाती है। प्रत्येक जगह सहजता की आवश्यकता है जो जीवन की अक्षुण्ण निधि है जिसके साथ चले तो नव आनंद भीतर समाहित होने लगता है और कोई आपको रोकने वाला नहीं होता।

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