किस प्रकार से अपने डर पर विजय पायें ।

हम अपने डर से कितने दिनों तक डर रहे हैं और हम डर से कब लडऩे की शुरुआत कर रहे हैं। यही सारी स्थितियां मन के भीतर डर की जड़ों को निकालने के लिए काफी है। पहले व्यक्ति अपने डर से लड़ता है उसके बाद अंततोगत्वा एक दिन घर से लडऩे की शुरुआत करता है। डर से लड़ते हुए संघर्ष करते हुए वो फिर अपने डर पर विजय की कामना करता है और अंततोगत्वा विजय प्राप्त करता है और ये प्रोसेस यदि थोड़ा ठहर जाए तो शायद जिंदगी निकल जाती है और व्यक्ति अपने डर के ऊपर विजय प्राप्त नहीं कर पाता। और जब भी हम किसी भी विषयक आधार से परे और सीधा उसके ऊपर विजय प्राप्त करने की ओर चले गए तो इतने लम्बे प्रोसेस से नहीं गुजरना पड़ता और जीवन का दर्शन बदलाव के संकेत लाता है। किन्तु इसी प्रोसेस के साथ चलते हुए हमको काफी बातें ध्यान रखने की आवश्यकताएं होती है। जो ये डर की स्थितियां है ये यदि वहम के साथ मिलकर हमारे मन में बहुत गहरे से अपनी जड़ें स्थापित कर जाए तो फिर उसको निकालना मुमकिन नहीं हो पाता। 

आप किसी व्यक्ति विशेष से मिलने से घबरा रहे हैं, बहुत लम्बे समय से चेष्टा है उस ओहदे के व्यक्ति से मिला जाए जहां से मेरा काम आसानी से संपन्न हो सकता है, किन्तु डर है कि कैसे बातचीत करेंगे, किस तरह से उसके सामने अपनी स्थितियों को रखेंगे। और इसी डर के साथ चलते हुए न जाने कितने  महीने गुजर जाते हैं। वहीं पर हम किसी जगह जाना चाहते हैं किन्तु अकेले जा नहीं पा रहे हैं, लोगों की आवश्यकता रहती है। लोगों के पास समय नहीं है वो भी एक डर का आधार हो गया। लम्बे समय से कोई इंटरव्यू फेस नहीं किया है, अब मन के भीतर ये डर प्रविष्ट कर चुका है कि किस तरह इंटरव्यू को फेस करूंगा, किस तरह से उनका सामना करूंगा यदि वहां से नाम मिलता है तो इस उम्र में मेरा हौसला पस्त होता चला जाएगा और वो ही डर लगातार आपके मन के भीतर समाता रहता है। आप अपने स्कूल के दिनों को याद करें या कॉलेज के दिनों को याद करें। 

कोई ऐसा सब्जेक्ट हुआ करता था जिससे डर मन में एक बार काबिज हो गया तो व्यक्ति बारम्बार खुद को यही कहता है कि हम पहले इस विषय का अध्ययन कर लेते हैं उसके बाद में करते हैं। जो सबसे मुश्किल है उसको सबसे बाद में प्रयासों की ओर लेकर जाएंगे तो जो डर है उसने एक ऐसा आधार शुरुआत से ही बनाकर रख दिया कि हम जो भी डरावनी स्थिति थी, उसको सबसे पीछे छोड़ देते हैं और वहां तक पहुंच ही नहीं पाते। जिस भी स्थिति से ये घबराहट है, ये विकार है, ये जो चिंताएं हैं ये डर का एक अलग-अलग तरीके का स्वरूप है जो मन के भीतर जाकर उसको इतना प्रजाइल इतना कमजोर कर देता है कि व्यक्ति उससे लडऩे की ताकत भी भूल जाता है तो इसी एक बात को अपने सामने लिखियेगा और कौन कौन से डर है उनसे किस तरह से हम लडऩे की ओर जा सकते हैं, डर तो नहीं है उनसे। किन्तु जैसे ही हम एक एप्रोच की ओर जाते हैं तो आप देखिये जीवन के भीतर जो उल्लास है, जो एक विजय की स्थिति है तथाकथित तौर पर वो अपने आप ही प्राप्त होती चली जाती है। तो डर से डरना बंद करें हम और डर से लडऩे की तैयारी करें हम तो इसी के अंदर संघर्षों से विजय की कामना सामने आने लगती है।

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