किसी व्यक्ति से जरूरत पडऩे पर आर्थिक सहायता ली गई थी और अब हमारे पास व्यवस्था नहीं है कि उस व्यक्ति उस रुपये पैसे को चुकाया जा सके। किन्तु उस व्यक्ति का फोन आता है और हम घबराहट के साथ में उस फोन को साइलेंट कर देते हैं। उसका मैसेज आता है, हम मैसेज को इग्नोर कर देते हैं। जबकि एक बार फोन उठाकर सिर्फ यही कहने की आवश्यकता थी कि अभी व्यवस्थाएं नहीं है। आप थोड़ा सा रुक जाएं मैं पूरा इसी में लगा हुआ है। किन्तु हम डर के मारे स्थिति को टालने लगते हैं। रात को आठ बजे ऑफिस से कॉल आता है और व्यक्ति कहता है कि ये समय अब नहीं है कि ऑफिस का कॉल अटेंड करूंगा, उसे भी साइलेंट कर देते हैं। मन में कहते हैं जो होगा देखा जाएगा। वहीं रविवार के दिन भी किसी अधिकारी का फोन आता है और हम कहते हैं कि ये मेरा अधिकार क्षेत्र में आज इनका कॉल अटेंड नहीं करूं, अवकाश का दिन है। मैं पूरे कामकाज पूरे करके आया हूं, कल देखूंगा। क्योंकि आज फोन नहीं उठाना या उठाना मेरा निर्णय रहेगा।
व्यक्ति कई बार जीवन के भीतर छोटे छोटे निर्णय लेता है जहां पर वो फोन को एक बार साइलंट तो कर देता है किन्तु आगे आने वाले जीवन के लिए एक बहुत बड़े कोलाहल को जन्म दे देता है। कहीं पर आप अपनी क्रिटिब्लिटी पर प्रश्न चिह्न लगा देते हैं। कहीं पर जीवन में विश्वसनीयता का आधार है, उससे दूर हटकर भरोसे से भी दूर हो जाते हैं। एक बार उस कॉल को अटेंड करके ये बोल दिया जाए कि अभी हम व्यवस्था कर रहे हैं, उच्च अधिकारी का फोन आए तो कहें अभी घर पहुंचे हैं फिर आप बता दीजिये टास्क क्या है, रविवार के दिन भी कामकाज की स्थितियां सामने हो तो वहीं से आप अपने अनुभव के बैंक को उपयोग करके उस कामकाज को पूर्ण कर देते हैं तो आगे जाकर ऐसा आधार बना पाते हैं कि कभी वास्तविक हद के अंदर समय की आवश्यकता हो तो व्यक्ति आपको मना नहीं करता और हाथोंहाथ से आपको कह देता है कि आप रविवार के दिन भी तैयार रहते हैं इसी वजह से चिंता की आवश्यकता नहीं है आप अपने कामकाज को पूर्ण करके आइये। किन्तु इसके लिए लॉयल पोजीशन का बेस क्रियेट करना होता है। वहीं रियेक्टिव एप्रोच से दूर हटकर एक्सपेटिब्लिटी को बढ़ाना होता है। सहज भाव के साथ उत्तर देना न जाने कितनी परेशानियों को दूर कर सकता है, किन्तु वहीं पर हम एक ऐसी इग्नोरेंस को लेकर आते हैं, जिसकी आवश्यकता नहीं और ये इग्नोरेंस ही धीरे-धीरे मन में अज्ञात भय को जन्म देने लगती है।
जब भी आपने अपनी कामकाज की सहर्ष स्वीकारोक्ति को बनाकर रखा, अपने नाम के साथ एक अलग आभा को जोड़ते चले गए। बात बहुत छोटी सी है किन्तु यदि हम जीवन में इसके मायने देखें तो कहीं-न-कहीं प्रत्येक व्यक्ति ऐसी स्थितियों का सामना करता है। और जब हम नजरिये को बदलते हैं तो वहीं से पूरी ही तस्वीर बदलाव के संकेत लेकर आती है। ऐसे कोलाहल से बचा जाए। ऐसी आगे आने वाले रियेक्टिव एप्रोच से बचा जाए। आज इस क्षण के अंदर उस स्थिति को स्पष्ट कर लिया जो तो बेहतर है।
Very nice and informative
ReplyDeleteजी धन्यवाद
DeleteTrue....
Deleteजी धन्यवाद
Deleteबिलकुल सही बात है
ReplyDeleteजी धन्यवाद
ReplyDeleteजी बिलकुल 100% सच कहा आपनेlll
ReplyDeleteजी धन्यवाद
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