जीवन का एक तुलनात्मक अध्ययन ।

 हम सभी का जीवन एक यात्रा के साथ में है, जो विशेष है, जो अपने आप में अलग है। जिसे तुलनाओं से मुक्त रखने की आवश्यकता है। किन्तु पूरे ही जीवन जैसे कि तुलनात्मक अध्ययन चलता है, वैसे ही चलता चला जाता है। एक वर्ष का बच्चा यदि चलना सीख ले और पास में कोई बच्चा रह रहा है उसने नहीं रखा है तो उसके साथ तुलना होती है। आगे बढ़कर चलकर दो अधिक शब्द बोलना सीख गया तो वहां से भी कुंठा जन्म लेने लगती है कि वो पीछे है वो आगे है। आफिस हो गया, पारिवारिक जीवन, व्यापारिक जीवन हो गया कहीं पर भी स्थितियों को देख लीजिये वो तुलना से मुक्त नहीं है। 

एक व्यक्ति अच्छा बोलता है, दूसरा इतने बेहतर संवाद के साथ नहीं है वहां पर कम्युनिकेशन के अंदर सेग्रिसन जन्म लेता है। तुलना करने लगता है। ये तुलना मन के भीतर के आनंद को कम करके चलती चली जाती है। मैंने जब ये यात्रा शुरू की थी, तब से ही तुलना के साथ हम चलने लगे थे, किन्तु मन के भीतर उत्साह मेरे साथ हमेशा बना रहा कि मैं जिस यात्रा के साथ चला हूं उसके साथ चलता चला जाऊंगा। डेढ़ वर्ष पूर्व राशिफल की शुरुआत की थी, पहले की जो चर्चाएं होगी वो यथार्थवादी आध्यात्मिक के साथ होगी जिसे मेटेरियलस्टिक के साथ होगी। हम बारह  भावों की चर्चा करते चले जाएंगे। यकीन मानिये इस यात्रा में लगातार आनंद आने लगता है जब तुलनाओं से मुक्त होते हैं। घर परिवार में किसी की चर्चा कर रहे हैं कि फलां व्यक्ति खुद को साथ जोड़कर कहता है कि मैं तो ऐसा बिलकुल नहीं। आपकी बात हो ही नहीं रही थी, जबरदस्ती खुद को जोडऩे का कार्य करते हैं वहीं से तुलना के साथ आकर अपने लिए जो हर्ष की अनुभूति थी, उसको घटाने वाले हो जाते हैं। 

एक व्यक्ति के पास में अलग गुण है, एक अलग व्यक्ति के पास अलग गुण है, हरेक व्यक्ति अलग-अलग यात्रा प्रवास के साथ है तो फिर ये तुलनाएं क्यों शून्य की ओर लेकर जाएं यह समझने की आवश्यकताएं रहती है। जब भी आप अपनी यात्रा में आध्यात्मिक चिंतन को जोडऩे वाले होंगे, हम अपनी ही इस यात्रा के स्वरूप के अंदर खुद के लिए जो हासिल करना चाहते हैं उसको एक नव दर्शन के साथ में देखने वाले होंगे तो ये सारे ही डिस्ट्रेक्शन दूर हटने लगते हैं। हम जो भी हासिल करते हैं उसका आनंद ले पाते हैं। अगला जंक्शन जब भी किसी व्यक्ति विशेष की तुलना में नजर आने लगता है वहीं से फिर से सामने गफलत आती है। एक एक्जयूक्टिव मैनेजर बना, तो महत्वाकांक्षा होगी कि सी.जे. डी.एम. बनेगा, किन्तु इस बात को क्यों भूलें कि जो हासिल हुआ है उसका पहले अपने भीतर अभिव्यक्ति किया जाए फिर कोई और मुकाम हासिल करने की ओर जाया जाए। इस यूनिक जीवन यात्रा को वैसे ही लेकर चलें जैसे ईश्वर ने हमें प्रदान किया। उसी स्वरूप में आनंद भी लेते चले जाइये।

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