ये अनुभव आपने भी अपने जीवन में कभी-न-कभी, कहीं-न-कहीं जरूर प्राप्त किया होगा कि किसी व्यक्ति से मुलाकात समाप्त हो रही हो, जाते-जाते वो आपसे कहे कि बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से लौटा दिया, मैं लोगों पर विश्वास करना ही भूल गया था, किन्तु आज मैं महसूस कर पा रहा हूं कि विश्वास किया जा सकता है। ये शब्द और उन शब्दों के साक्षी हम कहीं-न-कहीं जीवन में जरूर बनते हैं। किन्तु समझने लायक बात यह है कि क्या आत्मविश्वास या विश्वास कोई वस्तु है जो कभी खो सकती है जिसे पुन: लौटाया जा सकता है।
व्यक्ति संघर्षों के साथ होता है, समय लगातार उसके सामने चुनौतियां रख रहे होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने निज स्वार्थ के साथ उससे मुलाकात कर रहा होता है तो उसे ऐसे अनुभव मिलने लगते हैं कि वो धीरे-धीरे अपने आत्मविश्वास को खोता चला जाता है। आप नई जॉब में गए। दस वर्षों से एक जगह थे। वहां खुद को बहुत बेहतर तरीके से प्रूव किया है। नई जगह लोग आपको घेरे हुए हैं। अपेक्षाएं रख रहे हैं। कुछ चाह रहे हैं आप वहां विजय नहीं हो पाए कामकाज में, सफल नहीं हो पाए। आर्गेनाइजेशन को नया नहीं दे पाएं, जो ढर्रा चल रहा है उसी के साथ चलें। किन्तु आप जद्दोजहद करते हैं और बारम्बार कहीं-न-कहीं घर्षण के साथ हारा हुआ महसूस करते हैं। उसी प्रवृति के साथ व्यक्ति ये समय लेता है कि यहां मेरा आत्मविश्वास पूर्णरूप से खो चुका है। आप अपनी शिक्षा अच्छे से पूरी की, जॉब की ओर आए, खुद को अक्षुण्ण रखा क्या कोई आपका आत्मविश्वास ले सकता है या छीन सकता है, नहीं। संघर्ष और परिस्थितियों के साथ में व्यक्ति कई बार ऐसा महसूस करने लगता है कि मेरे भीतर की ऊर्जा समाप्त हो चुकी है।
हम परिस्थितियों के साथ में कितना घुल मिल कर खुद के भीतर की ऊर्जा को नकारात्मक करते चले जाते हैं यह सबसे ज्यादा समझने लायक बात है। जहां पर भी कार्य कर रहे हों, जिस स्तर पर भी कार्य कर रहे हों, ये हमेशा स्मृतियों में रखें कि भीतर के विश्वास के बूते बने हैं। एक वर्ष का बच्चा चलना सीखता है, तीन वर्ष का बच्चा नए शब्दों को पूर्णतया बोलना सीखता है, छह वर्ष बच्चा अपनी सोच में एक रचनात्मकता को लाता है और यहीं से उसके अनुभव बनने लगते हैं। प्रत्येक उम्र कुछ-न-कुछ नया देती है और हम विजय प्राप्त करते चले जाते हैं, किन्तु उस विजय को क्यूं एक समय के बाद में आकर भूल जाते हैं यह मालूम ही नहीं चल पाता। पचास वर्ष की उम्र तक सर्विस की, उसके बाद में ऐसी स्थिति आई जहां पर आपको जॉब छोडऩी पड़ी तो अब क्या यह समझ लिया जाए कि सेवानिवृति की उम्र आ चुकी है, शायद नहीं। एक समय था जो संघर्ष लेकर आया है, पुन: व्यक्ति अपने भीतर की ऊर्जा को प्राप्त करके खड़ा भी हो सकता है और निरन्तर गतिमान होकर जिस उम्र तक चाहे वहां तक कार्य कर सकता है। कर्म की विधा को अपने साथ में लेकर चल सकता है। अपने सेल्फ मोटिवेशन के सिद्धांत को इस तरह से भीतर विकसित करना चाहिए कि बारम्बार व्यक्ति के शब्द हमको प्रेरणा देंगे तो चलेंगे अन्यथा रुक जाएंगे ये एक न्यायोचित विधि खुद के साथ नहीं है। यही प्रक्रिया व्यक्ति को शून्य करने लगती है इससे बचने का प्रयास जरूर करना चाहिए।
आप किसी के शब्दों के मोहताज नहीं हो, वो आपको चार्ज करें और आप चलने की शुरुआत करें। हो सकता है, रात एक थकान लेकर आई है, संघर्ष लाई है, हारी स्थितियां लाई है, पुन: सूर्योदय होगा और पुन: आप अपने नए कार्य क्षेत्र की ओर चलते हुए उसी कार्य क्षेत्र की चलते हुए सफलता के नए प्रतिमान गढ़ते चले जाएंगे। प्रत्येक श्वांस के साथ संकल्प की गहराई लेकर चलना चाहिए कि नहीं हमने बहुत कुछ हासिल किया है, आगे भी उसी रफ्तार के साथ चलने वाले होंगे तो आत्मविश्वास और विश्वास को किसी वस्तु के साथ में जोडऩे की आवश्यकताएं बिलकुल भी नहीं है।
बहोत धन्यवाद!
ReplyDeleteजी धन्यवाद
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