मकर संक्रांति पर तिल का महत्व ।

 

                                                        मकर संक्रांति पर तिल का महत्व


एक पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव को उनके पिता सूर्यनारायण पसंद नहीं करते थे इसलिए भगवान सूर्यनारायण ने शनिदेव और उनकी मां छाया को अपनें से अलग कर दिया इससें क्रोधित होकर शनिदेव और उनकी मां छाया ने सूर्यनारायण को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया। अपने पिता सूर्यनारायण के कुष्ठ रोग से ग्रसित होनें के कारण उन्हें पीडि़त देखकर (यमराज जो कि भगवान सूर्यनारायण की दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र है) उन्होनें (यमराज) तपस्या की और यमराज की तपस्या के प्रभाव से सूर्य नारायण कुष्ठ रोग से मुक्त हो गये लेकिन सूर्यनारारायण ने क्रोध में आकर शनिदेव और उनकी माता के घर कुम्भ (जो शनि की राशि है) को जला दिया जिससें शनिदेव और उनकी मां छाया को बहुत कष्ट हुआ। तत्पश्चात यमराज नें अपनी सौतेली मां छाया और भाई शनिदेव को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए अपनें पिता भगवान सूर्यनारायण को समझाया यमराज की बात मानकर सूर्यनारायण शनि से मिलने के लिए उनके घर पहुंचे। सूर्य के द्वारा शनि के घर कुम्भ में आग लगाने के बाद वहां पर सब कुछ जल गया था केवल काले तिल बचे थे इसलिए शनिदेव ने अपनें पिता सूर्यनारायण की पूजा काले तिल से की। इसके बाद भगवान सूर्यनारायण ने शनिदेव को दूसरा घर मकर दिया।

ऐसी मान्यता है कि शनिदेव को तिल की वजह से ही उनके पिता, घर और सुख की प्राप्ति हुई तभी से मकर संक्रांति के पावन पर्व पर सूर्यनारायण की पूजा के साथ तिल का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है।

मकर संक्रांति के दिन से ही जल में वाष्पीकरण की प्रक्रिया शुरु होती हैं जिसमें स्नान करने से शरीर में चुस्ती-स्फुर्ति और ऊर्जा का संचार होता है और अनेक प्रकार के रोग दूर होते हैं इसी कारण इस दिन नदी, जलाशयों में स्नान करने का भी बड़ा महत्व बताया है। मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में ठण्ड का मौसम होता है इसलिए इस दिन गुड़ व तिल खाने का भी बहुत महत्व है इसके खानें से शरीर में उष्णता और शक्ति की प्राप्ति होती है और शरीर के लिए गुड़, तिल बहुत लाभदायक होता है। चरक संहिता में वर्णन आता है कि-

शीते शीता निलस्पर्ष संरुद्धो बलिनां बली। 

रसंहिन्स्त्यतो वायु: शीत: शीते प्रयुप्यति।।

इस शीत प्रकोप से बचने के लिए के लिए आयुर्वेद में घी, तेल, तिल, गुड़, गन्ना,  और उष्ण जल  के सेवन की बात कहते हैं। इससें सर्दी के मौसम में मानव शरीर की रक्षा होती है इस दिन खिचड़ी का सेवन भी उत्तम माना गया है खिचड़ी पाचन तन्त्र की क्रिया को दुरुस्त करती है। अदरक, लौंग, कालीमिर्च, इलायची मिलाकर खिचडी़ पकानें पर शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढनें के साथ साथ बैक्टीरिया से लडऩे में शरीर को मदद मिलती है और शरीर डिटोक्सीफाई होता है। यह वैज्ञानिक विचार सत्य है कि उत्तरायण में सूर्य का ताप शीत के प्रकोप को कम करता है शास्त्रकारों ने भी मकर संक्रांति को सूर्य उपासना, व्रत, गायत्री महामंत्र एवं पूजा उपासना एवं यज्ञ हवन का अलौकिक महत्व बताया है।

सूर्य का संक्रमण समस्त 12 राशियों में है-

रवे: संक्रमण राषौ संक्रांतिरिति कथ्यते।

अर्थात- सूर्य का राशि में संक्रमण ही संक्रांति कहा जाता है। मकर राशि का नवम धनु राशि से दशम मकर राशि में प्रवेश काल होता है पृथ्वी की एक अक्षांश रेखा को मकर रेखा कहते हैं श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार सुमेरु पर्वत के उत्तर भाग में दो पर्वत है जिनमें एक का नाम मकर पर्वत है पुराणों में संक्रांति का काफी विस्तार से वर्णन मिलता है ऋषि मुनियों ने सूर्य के दक्षिण से उधर्वमुखी होकर उत्तरस्थ होने की वेला को संस्कृति एवं संक्राति पर्व के रुप में स्वीकार किया है। पुराण शास्त्रों में उत्तरायण देवताओं का एक दिन और दक्षिणायन एक रात्रि मानी गयी है। 

पुराण और विज्ञान दोनों में ही उत्तरायण का बहुत महत्व बताया है सूर्यनारायण के उत्तरायण होने पर दिन बडा़ होता है इससें मनुष्य की कार्यक्षमता बढ़ती है मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है प्रकाशवृद्धि के कारण मनुष्य की भौतिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है इस दिन रात छोटी और दिन बड़े होनें लगते हैं दिन बडा़ होनें से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होनें से अन्धकार कम होगा इसलिए मकर संक्रांति के पर्व को अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होनें का त्यौंहार माना जाता है।

Comments

  1. आश्चर्यजनक (क्योंकि हम नहीं जानते थे)एवंबहुत अच्छी जानकारी।

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