ज्योतिष में बनने वाले "योग" की जिज्ञासा ।



प्रत्येक यात्रा यदि सकारात्मक क्यों के साथ बढ़े तो स्पष्टता देने वाली होती है। स्पष्टता की वजह से किसी भी कार्य क्षेत्र में उलझन, संशय की ओर नहीं आता। ये नहीं सोचता है कि जो बताया है बस वैसा ही करना है, इसमें खुद का दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है। जिज्ञासा बहुत बड़ी स्थिति है वहीं सकारात्मकता क्यों जुड़ता जाता है तो मंथन को आगे बढ़ा पाता है। 

ज्योतिष क्षेत्र की चर्चा करूं तो सूर्य और बुध का बुद्धादित्य योग, लक्ष्मी नारायण योग, लक्ष्मी योग बन रहा है तो वहीं पर भाग्येश की स्थितियां दशम भाव में बेहतर योगायोग को निर्मित कर रही है। नवम पंचम का योग बन रहा है साथ ही गज केसरी योग बन रहा है। ये सारे ही योगों के बारे में सुनते हैं एक अनुमानित परिभाषा ढूंढऩे का प्रयास करते हैं किन्तु गहनता के साथ मंथन की ओर जाते हैं और अधिक स्पष्टता मिल पाती है। सूर्य प्रकाश ग्रह हैं, बुध मानसिक चेतना के आधिपति युवा ग्रह है, जब भी युवावस्था के साथ में कोई होगा तो आप देखेंगे कि लचीलापन और ऊर्जा बनी रहेगी। ये कार्य कर जाऊं, वो कार्य कर जाऊं, सफलता की बुलंदियां हासिल कर लूं जिसको समाज या घर-परिवार ने छूआ ही नहीं है। एक प्रकाश ग्रह और दूसरा मानसिक आधिपति का साथ होगा तो एक तरह से व्यक्तिगत जीवन में नवीन प्रकाश को लगातार दिखाता चला जाएगा। 

व्यक्ति को मार्ग दिखेगा, वो अपनी बुद्धि को उपयोग में लाएगा और वहीं उस कार्य क्षेत्र में जुड़ा रहेगा तो वहां बुद्धादित्य योग की परिभाषा सामने आती है। बुध और शुक्र का लक्ष्मी नारायण योग बन रहा है तो बुध फिर से मानसिक और शुक्र भौतिकता के आधिपति। आपकी मानसिकता में भौतिकता घर कर गई, हासिल करना है का आयाम साथ चल रहा है तब भी व्यक्ति के लिए ये योग उसके मानसिक स्तर के ऊपर मैटेरियलिस्टक लग्जरी कैसे हासिल करनी है ये स्थितियां लगातार देता चला जाएगा। वहीं पर गज केसरी की स्थितियों में जब एक ज्ञान का आधिपति ग्रह है और दूसरे चन्द्रमा की स्थितियां है वो लगातार एजाइल एप्रोच में स्थिति देती है। लगातार चपलता के साथ मन की स्थितियों को परिवर्तित करती है। जब ऐसे ग्रह साथ जुड़ जाएंगे तो वहां पर आपका ज्ञान कुछ-न-कुछ हासिल करने की ओर जाएगा। जिस भी क्षेत्र में हम हासिल करने की ओर सोच लेते हैं, तो वहां से एक नया आधार जीवन को दे पाते हैं। वैसे ही शश योग बन रहा है चारों ही केन्द्र में किसी केन्द्र के अंदर तब भी देखेंगे कि प्रथम भाव में यदि शनि देव है और उच्चस्थ या स्वराशि स्थितियों के साथ में है तो वहां पर व्यक्तिगत जीवन में ओब्जर्वेशन के साथ में चल रहा होगा। प्रत्येक कदम में ठहराव होगा। यहां पर शश योग की स्थिति अच्छे से निकलकर आई। चतुर्थ भाव से पुरानी जमीन संबंधी फायदे मिले। सर्विस इंडस्ट्री में ठोस स्थिति के साथ प्रत्येक कदम बढ़ेाग। दृष्टि निक्षेप भी उसी आधार पर चलते हैं तो ये स्थिति इन योगों के साथ में है। और जब भी हम एक सुनी सुनाई परिभाषा की ओर नहीं जाए, उसमें गहनता से अध्ययन की ओर जाते हैं क्यों ग्रहों की स्थितियां एक राशि में ही उच्चस्थ होती है, क्यों नीचस्थ आधार पर जाती है, नवम पंचम का आधार क्यों होता है, दो बारह का संबंधी इतना अच्छा क्यों नहीं है। आप यहां मंथन करने लगते हैं और स्वयं के अनुभव के साथ जिज्ञासाओं को जोड़ते हैं तो वहां एक संतुष्टि और स्पष्टता सामने आती चली जाती है।

Comments