सीखने की कोई उम्र नहीं होती।

 उम्र 30 और 35 वर्ष के आधार को पूरी कर चुकी है। नौकरी या व्यापार में चल रहे हैं और जिस तरह से खर्चे निकलने चाहिए एक लिमिट के साथ सेविंग होनी चाहिए या जो जीवन चलना चाहिए वो चल रहा है। किन्तु जब भी खुद को अपडेट करने की बारी आती है। कुछ नया सीखने की बारी आती है। ये लगने लगता है कि अब वो उम्र शायद बची नहीं है, जो चल रहा है, जो सीखा है या जो अब संघर्षों की अनुभूति बहुत है, हम चलते चले जाएंगे और जीवन निकलता चला जाएगा। 

कोई व्यक्ति सलाह दे और कहे कि शायद यह हुनर आपको अपने भीतर विकसित करना चाहिए। आई.टी. फील्ड के साथ में है, कोई नई लेंग्वेज आई है, जिसको सीखने की आवश्यकता है। आर्टिफिशिल इंटीलेजेंस की ओर जाने की आवश्यकता है, या गहरे से उतरना है, लगने लगता है कि अब इन स्थितियों की आवश्यकता नहीं है, मैनेजमेंट के ओहदे की ओर पहुंच जाएंगे, इसलिए जो चल रहा है वो ठीक है, ये भावनाएं आने लगती है। वहीं किसी व्यापार में है, तकनीक को शामिल करना है, नया सीखने की आवश्यकता है, लोग आ रहे हैं और बार-बार यह कह रहे हैं क्या आपने तकनीक का यह क्षेत्र विकसित करके रखा हुआ है, हमें इसकी आवश्यकता है। आप नकार देते हैं। किन्तु धीरे-धीरे लगने लगता है हम पिछड़ रहे हैं। 

व्यापार, नौकरी पेशा जीवन हो जो नया आ रहा है उसको नकारने की बजाय एक बार अपनी समझ वहां पर विकसित करने की आवश्यकता है। हम शुरुआत से कई बार कहते हैं कि यहां इस विषय में मेरा इंटरेस्ट नहीं है किन्तु दस वर्षों के बाद, पन्द्रह वर्षों के बाद उसी विषय से हम खुद के साथ जद्दोजहद करते हुए नजर आते हैं। और वहीं अगर व्यक्ति क्यूरिसिटी की एप्रोच कि आप देखे ज्योतिष में बारह ही भावों में पंचम और अष्टम भाव व्यक्ति के भीतर की जिज्ञासाओं को दर्शाने का भाव है। 

जब भी व्यक्ति कहीं नकारने की बजाय अपनी एक दृष्टि किसी विषय पर डालेगा तो वहीं से यह समझ उसके भीतर विकसित होगी कि यहां कुछ नया सीखा जा सकता है। यहां कुछ नया मिलेगा। मानवीय मस्तिष्क की जो स्थितियां है, हृदय की स्थितियां है, मन के विचार है वो लगातार कन्फर्ट चाहते हैं, जो चल रहा है उसके साथ चलते चले जाएं। जब तक जिज्ञासाओं का प्रादुर्भाव मन के भीतर नहीं होता व्यक्ति कुछ नया सीखने की ओर नहीं जा पाता। हम जब अपने नजरिये को कुछ इस तरह से विकसित करने लगते हैं कि जो भी सामने नएपन के साथ होगा, हम एक बार वहां जिज्ञासा के साथ में जरूर देखने वाले होंगे। व्यक्ति कई बार अपने बच्चों से कहता है कि हमारी तो उम्र निकल गई अब सीखने की बारी आपकी है। जबकि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। प्रत्येक क्षण, प्रत्येक जगह व्यक्ति कुछ नया सीख सकता है। यदि वो चाहे तो। हम जिस भी उम्र के अंतराल के अंदर हो, जिज्ञासाभरा दृष्टिकोण रखें और वहीं से समझ को विकसित करते चले जाएं। इस वाक्य को जीवन से हटा देना चाहिए कि अब क्या करेंगे सीखकर या फिर ये मेरे इंटरेस्ट और रुचि का विषय बिलकुल भी नहीं है।

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