गलतियों में सुधार कर समाधान की तरफ जायें ।

बच्चे से सामान्य रूप से कोई गलती हो जाती है तो वह उसे छुपाने की कोशिश करता है। आखिरकार वह घर-परिवार के सामने आने पर उसे डांटा और समझाया जाता है और अंततोगत्वा उसके साथ में एक मुस्कुराहट भी शेयर की जाती है कि ऐसी गलतियां होती रहती है, आपको आगे बढऩा है। बच्चा गलती करेगा और निश्छल मुस्कुराहट के साथ चलता चला जाएगा। उसे पता नहीं है क्या सही है क्या गलत है। 

जब उम्र आगे बढ़ती है, युवावस्था या आगे की उम्र में गलतियां हो जाती है। आप अच्छे के लिए लोन ले रहे थे, किन्तु वो निर्णय गलत साबित हो गया और फंसते चले गए। वहीं जीवन के इस धारा प्रवाह स्तर पर कोई रिश्ता ऐसा जुड़ गया, जो अनचाहा था, वहां से भी परेशानियां निकलकर आई। वहां पर भी व्यक्ति अपने घर-परिवार से अपनी गलतियों को छुपाने का प्रयास करता है। आप देखें, बाहरी स्तर पर तो लडऩा ही है, वहीं घर परिवार से भी हम उस स्थिति को छुपाते चले जा रहे हैं। वहीं से एक घुटन जन्म लेने लगती है। व्यक्ति के भीतर परेशानी लगातार हिलोरे लेने लगती है, वहीं से डिप्रेशन जैसी स्थिति, टेंशन की पोजीशन, उच्च रक्तचाप ये सारी ही परेशानियां आसपास घूमने लगती है। 

सर्वप्रथम व्यक्ति को यही ध्यान रखना चाहिए कि यदि कोई गलती हुई है, तो जो अपने है उनसे बिलकुल स्पष्ट तौर पर बातचीत की जाए, हां, ये परिस्थिति ये नकारात्मकता और अनचाही गलती मेरे द्वारा हो चुकी है। मैं इसका समाधान नहीं खोज पा रहा हूं, आपके सम्मुख भी अपनी बात रखने से घबराहट मेरे भीतर है, कि मैं कैसे ये स्थिति आपके सामने रखूं। ज्यादा से ज्यादा वहां से हमको कुछ सुनने को मिलेगा, किन्तु अंततोगत्वा हम समाधान की ओर जाएंगे। मन को हल्का करते चले जाएंगे। नहीं, तो यही बोझ व्यक्ति को धीरे-धीरे विचलित करता चला जाता है और हम किसी भी समाधान की ओर जा ही नहीं पाते। दोनों ही जगह से व्यक्ति लड़ता चला जाता है। एक तरफ बाहरी स्थितियों के अंदर जिस सुधार की आवश्यकता थी, वो सामने नहीं। घर-परिवार से हम पूरे तरीके से प्लास्टिक मुस्कुराहट के साथ चल रहे हैं। 

जो स्थितियां है उसे ढक कर चल रहे हैं। ऐसे स्तर के ऊपर हमारी सोच लगातार संकुचित होने लगती है, समाधान आते ही नहीं है। कर्म से व्यक्ति विमुख होने लगता है और वहीं से उलझने घेर लेती है कि जीवन का आनंद, जीवन की सहजता गायब होने लगती है। प्रयास यह करना चाहिए कि जो भी परेशानी है अपनों के साथ में बांटें और वहीं से समाधान का प्रयास भी हमारे सामने लेकर आने की चेष्टाएं होती चली जाएगी। भले ही घर-परिवार के द्वारा हो, मित्रों के द्वारा हो। ध्यान रखें यदि हम खुद इतना सहज नहीं है कि इस गलती को घर-परिवार के सम्मुख रख पाएं, कोई ऐसा मित्र हो, कोई बहुत करीबी हो उसके द्वारा वह बातचीत घर तक पहुंचाई जाए उसके बाद घर-परिवार को, दोस्तों को फेस करें। आप देखियेगा, एक ताकत मन के भीतर आती चली जाएगी और हम वहीं से सोल्यूशन के साथ भी होंगे। ये ध्यान रखना आवश्यक है। बचपन का उदाहरण हमेशा जीवन में साथ लेकर चलना चाहिए। कुछ अपनों के लिए हम हमेशा उसी उम्र में रहते हैं जहां से हमारी शुरुआत हुई थी।

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