आत्मीयता और संवेदनाओं का जुड़ाव ।



किसी अति व्यस्त सड़क पर माता पिता अपने बच्चों के साथ चल रहे हों तो बच्चों को उस साइड किया करते हैं जहां से अधिक वाहन नहीं गुजर रहे हों और खुद उस अति व्यस्त सड़क के हिस्से की ओर आ जाया करते हैं। ये एक सुरक्षा की भावना है जो माता पिता के साथ बच्चों के लिए रहती है। वहीं व्यस्त से व्यस्त व्यक्ति को एक फ्लाइट से दूसरी फ्लाइट लेनी है, उसे कोई ऐसा सामान दिखाई दे जो आत्मीयजन के लिए खरीदा जाए तो सबसे पहले समय वहां व्यतीत करने का करेगा। बस से सफर किया है तब वो भी वहां पर अपना समय बिताने का प्रयास करता है और वहां से कहीं-न-कहीं कुछ-न-कुछ वस्तु घर परिवार के लिए वस्तु खरीदने की कोशिश करता है। 

एक व्यक्ति हजारों किलोमीटर नौकरी पेशा जीवन के लिए मां-बाप, पत्नी से सबसे दूर है, जैसे ही घर से फोन आता है, बातचीत होती है और उस बातचीत में लगता है कि घर में किसी की तबियत ठीक नहीं है। वो हाथों हाथ परिचित या दोस्त को फोन करता है कि एक बार घर जाकर देख कर आओ कोई व्यक्ति बीमार तो नहीं है। कोई आवश्यकता तो नहीं है। माता पिता को पहले से मालूम होता है कि हमारी बातचीत से मानने वाला नहीं है, किसी न किसी को भेजगा और स्वास्थ्य चैक करेगा और ऐसा ही होता है। किन्तु माता पिता प्रो एक्टिव होते हैं, ऐसा जवाब देते हैं जिससे वो सुकून में आ जाता है। लगता है ठीक है, किन्तु फिर भी मानता नहीं है, लगातार पूछता चला जाता है। ये सारी स्थितियां संवेदनाओं के साथ है। आप ऑफिस से घर लौटे और पत्नी पक्ष जैसे ही देखे चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कुराहट रहती है, आज गायब है। उनको एक क्षण में मालूम चल जाएगा कि शायद कुछ गड़बड़ है। 

हमारे साथ आज भी ऐसे रिश्ते मौजूद है जहां हमको वक्त बीताते समय मोबाइल बार-बार चैक करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। तकनीक के  साथ जुडऩे की आवश्यकता नहीं रहती। मन भटकाव की ओर नहीं आता। आत्मीयता और संवेदनाएं जुड़ी रहती है। जब भी रिश्तों को संभालने का प्रयास करें कई बार तथाकथित तौर पर भौतिकता में हम रिश्तों को भूल जाते हैं और ऐसी फैशीनेट में आगे बढऩे का प्रयास करते हैं, जहां आत्मीयता नहीं है, जहां सिर्फ बनावटीपन है। उससे दूर रहकर जितना रिश्तों के साथ जुड़े, चाहे संबंधों में दरारें आ गई हो, उनको पाटने का प्रयास करें। झुकना ऐसी स्थितियों में सही है, वहां रुकना सही है, जहां मन बार-बार ये कहता है कि यहीं से हमारें जड़े निकली हुई है। हम संवेदनाओं के इस केन्द्र बिन्दु के साथ में चलते हुए ही अपनी भावनात्मकता को बढ़ाने का काम करते हैं। भावनात्मकता के साथ जीवन बढ़ा है। इस बात को हम सहेजें। रिश्तों को सहजें। स्वयं के जीवन को संरक्षित करने का सबसे बड़ा आधार यही है कि आप रिश्तों को गहराई के साथ खुद के साथ जोड़ा जाए। कुछ गलतियां हम से हुई है, तो थोड़ा झुक जाएं। किसी ओर की गलती नजर आए तो उसके सामने पहले से ही झुक जाए। दोनों स्थितियों में झुकना और अनदेखा करना ठीक है।

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