ज्योतिष में देवगुरु बृहस्पति की दृष्टि अमृत समान है ।

 देव गुरु वृहस्पति की दृष्टि में अमृत है। यह हम सभी ने सुना भी है और जो भी व्यक्ति ज्योतिषीय अध्ययन से अनुभव लेता है उसे ज्ञात होता है कि वृहस्पति को बारह ही भावों में सबसे अधिक कारकत्व प्राप्त है। सूर्य देव की दृष्टि की चर्चा कर रहा था, उनकी दृष्टि में तेज है। वहीं आप पाएंगे मंगल की दृष्टि में अग्नि तत्व की प्रधानता है। बुध व्यक्ति जिस दृष्टि या भाव के साथ लेकर चलेंगे वहां पर एक लचीलापन तो देते हैं। शुक्र भौतिकता आवेदन देंगे तो वहीं शनि देव संघर्ष, कर्तव्यनिष्ठा, भौतिकता के आडम्बर से बाहर निकालकर आध्यात्मिकता की चेतना देंगे। वहीं राहू और केतु की स्थितियां व्यक्ति की उस भाव के साथ में जुड़ी हुई अंतरचेतनाओं को कई बार नकारात्मकता की ओर ले जाने वाले होंगे। 

देव गुरु वृहस्पति जिनकी दृष्टि में अमृत होने के साथ में ही ज्ञान की उपलब्धतता भी है। पांचवीं, नौवीं और बाइ डिफाल्ट एप्रोच में सातवीं दृष्टि भी वृहस्पति को प्राप्त है। जब भी देव गुरु किसी भी भाव के साथ होंगे तो एक तरह से अपनी दृष्टि के साथ त्रिकोण बनाते होंगे। अब जब हम गुरुत्व की बात करते हैं तो एक शिक्षक भी है तो वो प्रत्येक छात्र को समदृष्टि से देखने का प्रयास करता है। वो चाहता है कि वो ज्यादा से ज्यादा जीवन में आगे बढ़े। ये शब्द गौर करें, आगे बढ़ें। ज्ञान का उत्थान जब व्यक्ति को आगे बढ़ाने की ओर लेकर जाता है तो मन के भीतर विद्वता आने लगती हैे संतुष्टि होती है कि मेरा पढ़ाया छात्र वहां पहुंच गया, वहां से और ज्यादा भीतर के अंदर अमृतमयी भाव आने लगता है। तो जिस ग्रह को विशेष तौर पर देखिये कि जो ज्ञान के आधारभूत स्तर के साथ में शिक्षा और वहीं धन संचय, वाणी में ठहराव किस तरह से आएगा वहीं सर्वांगीण लाभ का जीवन में उपयोग किस तरह से करना है, भाग्य और वहीं आजीविका के साधन को निरन्तर किस तरह से चलाना है ये सब कुछ जीव यानि कि देव गुरु वृहस्पति को देखिये जीव की संज्ञा भी दी गई है उनके साथ जुड़ा हुआ तत्व है तो जब भी आप अपनी जन्म पत्रिका को देखते हैं देव गुरु वृहस्पति की जिस भाव के ऊपर दृष्टि होती है आप पाएंगे वहां से आपकी जिज्ञासाएं बढ़ी हुई है। वहां से आपके साथ एक शीतलता भी जुड़ी हुई है। और उसका आवरण भी चलता है। वहीं प्रश्न होता है कि देव गुरु वृहस्पति नीचस्थ हो तो उनकी दृष्टि में क्या प्रभाव होगा। देखियेगा, देव गुरु जब नीचस्थ होंगे तब भी सातवीं दृष्टि से अपने उच्च राशि स्थान को देखने वाले होंगे और वहां से भी अपनी दृष्टि के साथ एक त्रिकोण बना रहे होंगे। तो जहां ऐसी देवत्व की गुरुत्वीय स्थितियां है वहां पर अमृतमयी वर्षा तो होगी ही।

 आप जिस भाव के ऊपर देव गुरु वृहस्पति की दृष्टि देखेंगे ये समझ लीजिये वहां से वृद्धि। यदि आप जिज्ञासाओं के साथ लेकर चलते हैं तो निरन्तर गतिमान रहेगी ही रहेगी और वहीं से सुकून और संतुष्टि का अनुभव भी जीवन में होता चला जाएगा। तो इसी वजह से जब इनकी दृष्टि किसी भी भाव के ऊपर होती है तो हमको अपने कार्य संज्ञा भी वहां बहुत अलग तरीके से बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। जब सोलह वर्ष की इनकी दशा आती है, साथ ही वृहस्पति प्रधानक आप कार्य कर रह हों तो वहां से आप अनुभव के साथ में बहुत अच्छे से चलते चले जाते हैं। विश्लेषण की क्षमताएं कहां से मिलेगी, जब वो चिंतन के बड़े आधार के साथ चलने वाला होगा। और जब चिंतन का आधार भीतर समाहित होने लगता है तो व्यक्ति एक नव प्रकाश के साथ चलता है। इसको ध्यान रखना चाहिए। हम जिस भी क्षेत्र में है, जो भी सीखे हुए हैं, जैसे भी प्राप्त किया है, आप ज्ञान को लोगों तक साझा करने का प्रभाव जरूर लेकर आएं वहीं से चित्त में शीतलता का वास होता चला जाएगा।

Comments

  1. सादर प्रणाम गुरुदेव मेरा सिंह लग्न है और उच्च का बृहस्पति द्वादश भाव में स्थित है अंश बल से युत हैं। और चंद्रमा पंचम भाव में धनु राशि में हैं पंचम भाव में सूर्य मंगल के साथ। हालांकि लग्न में शनि राहु की युति हैं। मुझे एक ज्योतिषी मिलें उन्होंने कहा तुम्हारी पत्नी सुंदर सुशील गुणी व भाग्यशाली होगी और तुम्हारी पहली संतान कन्या होगी और वह भी बहुत भाग्यशाली होगी। तुम्हारा पूर्ण भाग्योदय बयालीस वर्ष बाद होगा शून्य से शिखर की यात्रा करोंगे। दो बातें तो पूर्णतः सत्य हुईं। क्या पूर्ण भाग्योदय होगा बयालीस वर्ष तीन महिने मेरी आयु हो चुकी है। उन्होंने कहा कि बृहस्पति और चंद्रमा का यह राशि परिवर्तन योग तुम्हारी कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक प्रकार का यह गजकेसरी योग है। वह अब भी अपनी बात पर क़ायम है।

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