वाणी से जीवन को बनायें ऊर्जावान ।

हम सभी के जीवन में स्मृतियों का अनंत और अटल आकाश हमेशा साथ चलने वाला होता है। जहां कभी रात्रि रूपी शांति और एकाकार भी है तो कहीं दिवस में जो सूर्य देव की आभा पूरे तरीके से चमत्कृत करने वाली होती है वो भी है। यानि पश्चाताप  भी है तो वहीं कुछ सुकून के क्षण हमारे भूतकाल के साथ में हमेशा जुड़े हुए होते हैं। सुकून की जो भी क्षण है, वो मन को निराशाओं से बाहर निकालने वाले होते हैं और ऊर्जा देने वाले होते हैं तो वहीं जो भी पश्चात्ताप हमारे भूतकाल के साथ जुड़े हुए हैं वो कई बार सामने आते हैं और निराश करके चले जाते हैं। आज मैं नियमित रूप से ब्लॉग लिखवा रहा था तो बुध की महादशा के बारे में मैं अपनी पूरी ही मन की स्थितियों के साथ वर्णन कर रहा था, जो अनुभव मिले, जो पढ़ा उसके हिसाब से कैसा प्रभाव देती है। एक बात कौंध रही थी कि बुध वाणी पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। लचीलापन भी रहता है। जिस भी ग्रह के साथ होते हैं उसके ही गुण-धर्म को अपनाकर चलने वाले हो जाते हैं। ठीक उसी तरह से वाणी का प्रभाव भी जीवन में लगातार चलता है। 

हमने सिच्युएशन पर कैसे कमिटमेंट किए, आगे जाकर पूर्ण कर पाए या नहीं। किसी व्यक्ति विशेष उस दिन कुछ कहा था जिसका पश्चात्ताप आज भी हमारे साथ में चल रहा है। जो भी व्यक्ति सेल्फ जस्टिफिकेशन से दूर है। उन सभी को कहीं न कहीं पश्चात्ताप और सुकून दोनों ही क्षण पास्ट से मिलते जरूर हैं। हम ये देखें कि वाणी ने जाने कितनी बार ऐसी दोषपूर्ण अभिव्यक्ति को लोगों के सामने रखने का प्रयास किया जहां से हम खुद को नेगेटिव करते चले गए। एक उच्च अधिकार है, एक सहकर्मी को कुछ समझाना था, कुछ तल्खियां आई, कुछ ऐसे शब्द कह गया जहां उन शब्दों से वह बच सकता था किन्तु वहीं से औरा भी नेगेटिव होने लगता है। बात आई और गई हो जाती है। गलती सुधर जाती है, किन्तु उन शब्दों का वास्तविक नकारात्मक प्रमाण है वो उस सहयोगी के साथ में हमेशा रहने वाला होता है। 

रिश्तों में भी कई बार यह बात निकलकर आती है। प्रोफेशनल लाइफ को छोड़ दीजिये, मित्रों के साथ भी ये बात निकलकर आने वाली होती है। इसी वजह से वाणी के साथ में जो ग्रह प्रमुखता के साथ जुड़े हुए हैं। बुध वो भी पारे की प्रकृति के हैं। यहां देखें देवगुरु वृहस्पति की तरह वृहद ग्रह नहीं हैे साथ ही साथ में शनि देव जो कि धीमीचाल के आधिपति है उनकी तरह भी नहीं है। सूर्य देव प्रखर चेतना देने वाले होते हैं उनकी तरह भी नहीं है। वाणी किस तरह से बदलाव लेकर आ सकती है और वाणी किस तरह से बदलाव स्वीकार करवा सकती है। ये सारे ही गणनाएं मन के भीतर चलने वाली होती है। तो हम अपनी वाणी से कितने लोगों को ऊर्जावान कर सकते हैं। कितने लोगों को निराश होने से बचा सकते हैं। ये सब कुछ हमारे ऊपर निर्भर करता है। शब्दों के चयन में कई बार हमको बहुत अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है और वहीं से लचीलेपन का जन्म होता है और वहीं से हमारे जीवन की औरा की पोजीशन होती है, जिसे आभामंडल कहते हैं वो भी इन शब्दों के साथ में प्रतिध्वनित होता चला जाता है। जीवन वर्तमान के साथ चलता रहे, ऐसे कोई भी पश्चात्ताप साथ में जुडऩे वाले नहीं हों। सुकून हमारी वाणी द्वारा जुड़ता चला जाए इन्हीं आशा और अपेक्षाओं के साथ।

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