मन के भीतर की स्थिति ।

आज का यह विषय व्यक्ति की मानसिकता के साथ गहरे से जुड़ा हुआ है। ये एक बीज को रोपित करने वाली बात है मन के भीतर। जब हम किसी एक वर्ष का टार्गेट बनाकर चलते हैं, यहां मुझे फ्लैट खरीदने का निर्णय लेना है। इतनी पूंजी जुटा पाऊं जिससे फ्लैट खरीद पाऊं, भले ही आगे चलकर किश्तों को चुकाता रहूं। ये एक बीज व्यक्ति मन के भीतर डालता है तो वहीं पर साल की शुरुआत में या किसी छह महीने की शुरुआती स्तर पर वो अपने जीवन को सोचता है और ये कहता है कि मुझे वहां पर फलां जगह घूमने जाना है। इसके लिए इतना रुपया पैसा जुटाना है तो लगातार आपका जो मन है, मानसिकता है, उसी के साथ इवोल होती चली जाती है। वहीं आपने पन्द्रह साल के निवेश की एक प्रवृति अपने साथ में जोड़ी और अच्छे से भीतर रोपित करके रख दिया। उस सोच को लगातार विचार के साथ लेकर चलें कि नहीं मुझे इसी तरह की एप्रोच के साथ आगे बढऩा है। तो वहां से आप धीरे-धीरे इवोल होना शुरू करते हैं, उसके साथ सोच को लेकर चलते हैं। वहीं आप ये सोच लेते हैं मुझे पन्द्रह साल तक जॉब करनी है, रुपया-पैसा खर्च करना है, रेंटल बेस पर रह रहा हूं, न जाने कब किस शहर में जाऊंगा। 

आप सोचते हैं कि मुझे निवेश करना है। वैसे ही परिपक्वता को देखते चले जाते हैं। ये सारी प्रवृतियां मन के भीतर बीज के रोपन के साथ जुड़ी हुई है। आपने धरती के भीतर किसी भी एक पौधे या किसी एक प्राक्टय वृक्ष का छोटा-सा बीज डाला तो वहां से उसे लगातार सींचना होगा, धैर्य के साथ, श्रम के साथ बढ़ते देखना होगा। वो उस पेड़ का इवोवलिंग प्रोसेस है जो कभी पौधा बनेगा, फिर आगे बढ़ेगा। वहीं जीवन के भीतर भी बच्चों के साथ हम कौन से ऐसे बीज रोपित कर रहे हैं, निरन्तर कितना विकसित कर रहे हैं। किसी कला के साथ रुचि होती है, एक दिन जन्मी दूसरे दिन ही मन से लुप्त हो गई तो व्यक्ति कहीं पहुंचने वाला नहीं होगा। बच्चे का भविष्य उसके साथ गहरे से नहीं जुड़ती। यह स्थिति हमारे मन के भीतर है। 

हम निवेश की स्थितियों को लेकर चलते हैं तो भविष्य के साथ में उससे जुड़ते हैं। हम खर्चों की स्थितियों के साथ जुड़ते हैं तो उस लक्ष्य की ओर जाते हैं। एक व्यक्ति की उम्र के साथ में अब दो बच्चों की जिम्मेदारी विवाह की उसके साथ है, तो वो लगातार उनके साथ जुड़ता है, वैसी प्लानिंग होती है वो निरन्तर बढ़ता चला जाता है। मन के भीतर की अवस्थाएं है जिसके साथ हमको बीज रोपित करने की आवश्यकताएं बहुत गहरे से है। इसके साथ में चलने की आवश्यकताएं भी व्यक्ति को होनी चाहिए। हम निरन्तर ये प्रयास करें कि स्वयं के भीतर कौन से विचारों को हम ग्रहण करने की ओर जा रहे हैं, अपनी संतान को भी ऐसे कौन से विचार दे रहे हैं जिससे कि वो इसी तरह इवोल होते चले जाएं। जब भी हम किसी वर्ष का संकल्प बनाने वाले हों, अपने जीवन के भावी वर्षों के साथ कुछ नया सोचने वाले हों तो उन सारी स्थितियों को ग्रहण करे जो सोच के साथ गहरे से उतर सकती है। हम जो चाहते हैं उसमें इवोवलिंग प्रोसस आता है तो लक्ष्य पूर्ति की ओर चलता चला जाता है।

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