कुंडली के बारह भावों में बनने वाली युतिसंगत स्थिति ।

 कुंडली के बारह ही भावों में यदि बुध और वृहस्पति की युति साथ में बन रही हो। चन्द्रमा और बुध की युति साथ में बन रही हो। बुध और मंगल की युति बन रही हो तो वहीं पर शुक्र सूर्य देव की युतिसंगत स्थितियां होरोस्कोप में देखी जाती है, साथ बन रही हो। वहीं पर आप देखें जब ये युतियां साथ में बनती है तो व्यक्ति की मानसिकता पर अधिक प्रभाव डालने वाली होती है। चन्द्रमा और बुध की युति है, मेंटली आप डिस्टर्ब रहेंगे। कामकाज में अस्थिर वृति बनी रहेगी। बुध और वृहस्पति आपस में शत्रुवत स्थितियों को निर्मित करते हैं, किन्तु मानसिकता को अस्थिर क्यों कर देते हैं।

 बुध जहां मानसिक चेतना के आधिपति है, वृहस्पति ज्ञान के आधिपति है, जब व्यक्ति सिच्युएशनल और अपने अनुभव के साथ में नहीं चलता, बारम्बार कन्फयूज होता है तो वहां से निर्णय अनिर्णय की स्थितियां आने लगती है। बार-बार किसी कामकाज में स्वयं के द्वारा विशेष के समय में गलती देख रहे हैं और दूसरे आधार पर यह भी देखें कि इसी कामकाज कुछ सालों पहले बहुत अच्छे से करते चले जा रहे थे, किन्तु अब यह अस्थिर वृति क्यों सामने आने लगी है। वहीं हमको अपनी होरोस्कोप में दशाओं को भी देखना चाहिए वहीं ऐसी युतियां तो नहीं बनी हुई है जिस पर एक निर्धारण जरूर करना चाहिए। 

आपके सामने भाग्य का एक महत्वपूर्ण संकेत आ रखा है कि इस कामकाज की ओर जाएंगे और आसानी से विजय हासिल करेंगे किन्तु जैसे ही उस ओर बढ़ते हैं निर्णायक मौके पर होते हैं और मन सोचना शुरू कर देता है, गलत तो नहीं कह देते हैं, वहीं से मौका निकल जाता है। रुपया पैसा  था, एक जमीन खरीदनी थी, हम खरीद सकते थे, किन्तु किसी व्यक्ति ने मन के भीतर एक तरह से द्वंद्व वाला विचार डाला, कहा शायद जमीन खरीदने की ओर नहीं जाना चाहिए, आप जा सकते हैं, किन्तु आपने  निर्णय नहीं लिया  और किसी ने सौदेबाजी कर ली। दस वर्ष बाद पता चलता है कि उसकी कीमत आसमान छूने वाली हो गई। शेयर मार्केट संबंधी कामकाज में जब ऐसी अस्थिर चित्त वृद्धि के साथ जुड़े हुए हों तो एक बार कुंडली को जांचना परखना जरूर चाहिए। ऐसी युतियां बनी हुई हो, जो मन के भीतर ऐसे उद्वेलित करने वाले भाव लाती है, तो सम्यक आधार पर ये समझने की आवश्यकताएं हमको जरूर होनी चाहिए कि ऐसी उपासना पद्धतियों की ओर जाया जाए या फिर स्वयं को ऐसे मौकों पर और ज्यादा अनुभव के साथ लेकर चलने का प्रयास किया जाए जहां अन्तर चेतनाएं इतनी हावी नहीं हो पाए तो कहीं न कहीं हम एक सोल्यूशन ओरियंट एप्रोच की ओर जा पाते हैं।

 जब भी ग्रहण दोष जैसी स्थितियां बन रही हो तब भी हम अपने विचारों के साथ में एक स्थिरता को लाने का प्रयास जरूर करें। व्यक्ति जब भी अस्थिर है तो निर्णय के अंदर गलती होगी। किसी कामकाज की ओर है, और सोच कुछ और रहे हैं, 24 घंटे हैं, किन्तु आपके साथ न जाने कितने ïफ्रेम चल रहे हैं, यदि स्टेबल मोड को लाते हैं, हम अपनी सोच को व्यावहारिक दृष्टिकोण देते हैं तो वहीं से सुलझने सामने आने लगती है। इसी वजह से आप इस बात को जांचे और परखें जरूर और वहीं से अपना आधार अलग तरीके से निर्मित करते रहें।

Comments