कर्म को जीवन का आधार बनाकर चलें ।


जो लोग गर्म प्रदेशों में रहते हैं उन्होंने एक अनुभव जरूर लिया होगा। आप तपती दोपहरी के अंदर गाड़ी चला रहे होते हैं आगे कुछ एक तरल पदार्थ नजर आता है, ऐसा लगता है आगे पानी है। जैसे ही वहां पहुंचता है, वहां कुछ नहीं होता, ये सिर्फ गलत फहमी होती है। ठीक उसी तरह से जहां बारिश ज्यादा होती है वहां बूंदे विजन को ब्लर करके रख देती है। सर्द प्रदेशों में कोहरा सब कुछ ढकने वाला होता है। जब हम उसके पार पहुंचते हैं तो स्पष्टता आने लगती है, किन्तु कोहरा साथ ही साथ रहता है। ठीक उसी तरह से जीवन में भी हमारे विजन के अंदर ये क्लियरिटी आ नहीं आ पाती। 

एक बच्चा दसवीं में है तो उसे ये बताया जाता है, अनुभवी लोगों द्वारा, यहां बहुत अच्छे से परीक्षाओं को पास कर लो, उसके बाद तो कॉलेज है, और आराम से चलने वाले होंगे। कॉलेज में पहुंचता है तो अलग तरीके से काम्पीटिशन नजर आता है। वहां से लोग फिर से कहते हैं यहां कॉलेज बहुत अच्छे से कर लो, फिर जॉब है बिजनस है चलते चले जाओगे। कोई दुविधा नहीं है। वहां से भी जद्दोजहद के साथ पास आउट होता है फिर उसे बताया जाता है कि अब नौकरी पेशा जीवन में काम्पीटीशिन है यहां से पार पाना है तो लगातार मेहनत करनी होगी। व्यक्ति पुन: जुटता है, पुन: प्रयासों को चरम देने का काम करता है। उसके सामने फिर से एक विजन होता है कि विदेश में जाकर हासिल करना है। अपने छोटे से शहर से निकलकर बाहर जाना है। बड़े शहर में बहुत कुछ हासिल करना है। गृहस्थ जीवन में आ गए हैं तो अब संतान पक्ष की ओर जाना है। संतान पक्ष के साथ में है तो उसके लिए सारे सुख सुविधाएं जुटानी है। 

एक टू बीएचके लिया है तो थ्री बीएचके की ओर जाना है। गाड़ी चार से पांच लाख की है तो उसे दुनी कीमत के साथ लेकर जाना है। ये व्यवस्थाएं आगे से आगे व्यक्ति के साथ चलती है, वो रुकने का नाम नहीं लेता। एक स्थिति के अंदर ये बताया जाता है कि यहां पहुंच जाओ फिर आराम है। एक स्थिति के अंदर व्यक्ति खुद को कहता है ये हासिल कर लेता हूं, फिर आराम हूं, ये देख लेता हूं फिर आराम है। एक समय तक हासिल करने की प्रवृतियां चलती है, वृद्धावस्था जैसे ही आती है तो वो हासिल करना देख लेने के अंदर बदल जाता है। मैं अपनी भावी पीढ़ी की शादी देख लूं, बच्चों को सैटल होता देख लूं। मैंने जो हासिल किया है उसे अच्छे से बांट दूं। अनुभव बांटना चाहता है किन्तु उसके साथ लोग या फिर यूं कह लीजिये प्रत्येक उम्र के तथाकथित लोग जुड़े रहते हैं और यह यात्रा कहीं पर भी समाप्त नहीं होती। इसी वजह से आज हम कर्म कर रहे हैं उसमें कितने अच्छे से संलग्न है, कितना जुड़कर चल रहे हैं, जो आज है वो पूर्णतया कर्म के साथ जुड़कर आनंद प्रदान करने वाला है किन्तु जब भी व्यक्ति आगे देखता चला जाएगा, आज को शून्य करता चला जाएगा और ऐसी मृगतृष्णा उसको जीवन में प्रत्येक क्षण मिलने वाली होगी। हम आगे के लक्ष्य जरूर रखने वाले हों, दिक्कत नहीं, चिंता-परेशानी नहीं है, किन्तु आगे का लक्ष्य क्या हमको उलझा तो नहीं रहा है ये मूल मंत्र भी अपने मन और मस्तिष्क के अंदर स्पष्ट करके रखना चाहिए । 

जब भी व्यक्ति किसी और के जीवन के साथ में खुद की तुलना करता है वो तुलना उसको शून्य की ओर लेकर जाती है। जब भी व्यक्ति और के आशियाने को देखकर उसके जीवन को देखकर उसकी चकाचौंध अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है तब भी यात्रा शून्य की ओर जाती है। प्रत्येक यात्रा अनंत प्रवाह के साथ में उस परम तत्व द्वारा संचालित है किन्तु जब भी हम ऐसी सारी ही स्थितियों को लेकर निरन्तर तौर पर आगे से आगे ऐसे लक्ष्य बनाने का काम करते हैं तो शायद आज को खो बैठते हैं। इस यात्रा में आज सबसे महत्वपूर्ण है। जिसको जीवन में समेट कर चलने की आवश्यकताएं हैं।

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