आज विचारों की शुरुआत मैं संस्मरण के साथ करना चाहता हूं जो एक सम्मानित बुजुर्गवार से मुझे मिला जिन्होंने अपने जीवन के अंदर व्यापारिक क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम स्थापित किया। अपने तीनों ही पुत्रों को कामकाज के अंदर सम्मिलित किया और जो भी सुख-सुविधाएं भौतिक आधार पर या फिर अचल संपत्ति के आधार पर जुटाई जा सकती थी, वो सब कुछ जुटाई और मन के साथ में जुड़ते हुए समाज के लिए भी बहुत सारे कार्य किए। किन्तु अपने जीवन के संध्या अंतराल में प्रवास करते हुए मन में कचोटन थी, कि यहां गृहस्थ जीवन के साथ चलते हुए मेरे तीनों बच्चे न जाने कौन से छोटे छोटे लोगों के साथ जुड़ चुके हैं कि आज इस घर में अदृश्य दीवारें बन चुकी हैं। उस व्यक्ति के मन के भीतर एक ही कामना रहती थी, मेरा पूरा परिवार पुन: एकजुट हो जाए। वो व्यक्ति लगातार सोचते रहते हैं। खुद के साथ में एक चिंतन के आधार को लेकर चलते हैं।
एक दिन सुबह उठकर घर के आंगन के अंदर श्रीकृष्ण भजन के साथ सुबह की शुरुआत करते हैं। तीनों ही पुत्रवधुएं भी उन श्रीकृष्ण भजनों से आकर्षित होती है। एक दिन जाता है, दूसरा दिन बीतता है, तीन से चार दिन बीतते हैं। एक पुत्रवधु उसी तय समय के ऊपर नीचे आती है और अपने ससुर जी के साथ में श्रीकृष्ण भजनों को गाने लगती है। तीन से चार दिन बीतते हैं एक और पुत्रवधु और थोड़े दिन में तीसरी भी सम्मिलित हो जाती है और भजन की अमृत धारा बहने लगती है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि धीरे-धीरे पूरा परिवार ही उस आंगन में मौजूद होता और श्रीकृष्ण भजनों के साथ में उस सुबह की शुरुआत होती। संगत में बहुत बड़ी ताकत है वहीं जो हरि के साथ जुड़े हुए शब्द हैं उनकी आभा, उनका आकर्षण बहुत अधिक है।
एक छोटी-सी शुरुआत ने उस घर परिवार के परिदृश्य को बदल कर रख दिया और जुड़ाव की स्थितियां थी, वो पुन: वहां पर निरूपित होती चली गई। प्रयास करने पड़ते हैं। प्रयासों के साथ में मन के भीतर उस एकात्मक आधार और उस ऊंकार को मन के भीतर गहरे से स्थापित करके रखना होता है। सारे ही सुलझने सामने होती है। उलझा हुआ जीवन जब भी सुलझने की ओर जाता है तो वह न जाने कितने और जीवन को प्रभावित करने वाला होता है। ये घटना आज भी मानस पटल पर तरोताजा है। वो शुरुआत, उस बुजुर्गवार की उलझनों को हटाकर चली गई। नया वर्ष फिर से शुरू हो चुका है, हम एक शुरुआत करें जो बीता वो रीता और जो अब सामने है, वो अवसरों के साथ में है। कर्म की प्रतिध्वनि फिर से महसूस करनी होगी। अपने कामकाज को नया आधार देना होगा। वर्ष 2021 की शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए सर्वोच्च सत्ता से कामना करता हूं कि हम फिर से जीवन के अंदर सरलता और सहजता का आधार बनाकर चलें, जो ईश्वर प्रदत्त कर्म अलग-अलग क्षेत्रों में मिले हैं, जहां पर भी अपने मन के भीतर की जितनी भी उलझनें है उनको हटाएं और एक नवीन आधार के साथ में अपने कार्य क्षेत्र में उन्मुक्त हों। यदि कोई संकल्प लिया है तो उस संकल्प को हम पूर्ण कैसे करेंगे, उस आधार को लगातार अपने मन में प्रतिध्वनित करते चले जाएं कि हम जो सोच रहे हैं वो सिर्फ सोच नहीं रहेगी वो कर्म के साथ जुड़कर जीवन को नया प्रभाव देने वाली होगी।
Comments
Post a Comment