अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी व्यक्तित्व



किसी व्यक्ति को बहुत दिनों तक आब्जर्व और नोटिस करने के बाद हम उसके प्रति अपने मन में एक छवि बनाने लगते हैं और उस छवि को लोगों के साथ बांटते भी हैं। और ऐसा ही लोग हमारे लिए भी करते हैं। ये व्यक्ति इंट्रोवल्ड है या एक्सट्रावल्ड हैे। इसी छवि को स्वयं के लिए सुनते हुए कई बार इसी बात को सही भी मान लेते हैं। ये व्यक्ति अंतरमुखी है, तो फिर निर्णायक मौकों पर भी शांत रहेगा। जहां बोलने की आवश्यकता थी, वहां पर भी सारी स्थितियां मन के भीतर रही। 

किसी व्यक्ति के बारे में कहा जाता है ये तो बहिर्मुखी है, वही छवि खुद के साथ जोडऩे का प्रयास करने लगता है। ऐसा लगने लगता है कि मुझे तो कहना है कि मैं शांत रहने वाला नहीं हूं। लोग भी उसे वही कहते हैं आप तो अपनी बात रखे बिना रह ही नहीं सकते। कहीं केवल सुनने की आवश्यकता थी, किन्तु फिर भी हम उस छवि के साथ में खुद को इतना गहरे से गढ़ चुके थे, उससे बाहर निकल ही नहीं पाए। निर्णायक मौकों पर कुछ कहना था, या फिर निर्णायक मौकों पर बिलकुल शांत रहकर आब्जर्व करना था दोनों ही स्थितियों के अंदर हम जिस छवि को ओढ़कर चल रहे थे, उसकी वजह से हमेशा विपरीत ही रहे। इस वनस्पित हम क्या है, कैसे चलते हैं और अपने कामकाज को किस तरह आगे बढ़ाने वाले होते हैं ये सारी ही स्थितियां क्लियर करके चलना चाहिए। 

मैं जिस क्षेत्र से जुड़ा रहा हूं, ज्योतिष क्षेत्र के साथ, वहां जब भी केमद्रुम दोष होता है तो व्यक्ति विश्वास के साथ बात नहीं रखेगा, एकांत प्रिय होगा, उसी छवि के अनुरूप हम अपने को देखने लगते हैं, महसूस करने लगते हैं। वहां पर पापकृतरी दोष में चन्द्रमा है तो ऐसा सुना जाएगा और महसूस भी किया जाएगा कि ये व्यक्ति कई बार अपनी हताशाओं से कुंठित रहता है। जब भी एक हार मिलती है तो ऐसा लगता है कि शायद उस क्षेत्र विशेष के अंदर फिर से हम किसी भी रफ्तार को हासिल ही नहीं कर पाएंगे। और जब भी व्यक्ति अपने बारे में कोई भी निर्णय सुनेगा, तो उसे आत्मसात करने में और वो भी स्मृतियों में रहे कि यदि वो निर्णय नकारात्मक है तो हम सबसे पहले उसको आत्मसात करते चले जाएंगे। मन के भीतर उस पोजीशन को बहुत गहरे से बिठा लेंगे, हम ऐसे ही हैं। जबकि इस स्थिति को बदला जा सकता है। लगातार एक इवोवलिंग प्रोसेस की ओर चलना होगा यदि आप इन्टरोवल्ड है कि निर्णायक मौकों पर बोलते नहीं है। आज तय करके जाएंगे कि अगले व्यक्ति के सामने पुरजोर तरीके से रखेंगे ही। 

हम लगातार इस छवि के साथ रहे हैं कि कहीं पर भी राय देने से पीछे नहीं हटते हैं, तो आज ये तय करते जाएंगे कि सिर्फ सुनना है। जब भी व्यक्ति अपने मोड को चेंज करता है वहीं से इवोल करने की शुरुआत कर देता है। एक दिन व्यक्ति मौन व्रत धारण किया तो फिर उसे सिर्फ सुनना है। इसके अलावा कोई आप्शन नहीं है। तर्क मन में जन्म भी लेंगे तो हाथों हाथ सुप्त अवस्था में चले जाएंगे। इसी स्थिति के साथ में खुद को डवलप करने का प्रयास करना अपने लिए छवियां सुनते हैं उनसे बाहर निकलने का एक आधार मात्र होगा।

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