किसी भी कार्य में नयेपन के साथ अवसर को खोजें ।

कार्पोरेट कल्चर में किसी बड़ी डिजगनेसन के साथ जुड़े हुए व्यक्ति से एक दिन चर्चा हो रही थी। उन्होंने कहा कि मैं जब भी मूव करता हूं तो पूरी ही टीम के साथ मूव करता हूं, उनके बिना जाना मैं पसंद नहीं करता। किसी नई आर्गेनाइजेशन में जाता हूं तो जो विश्वस्त लोग हैं उनको साथ लेकर चलता हूं। वहीं पर एक व्यक्ति विशेष के साथ और चर्चा हो रही थी, जो एक ओहदे पर थे। उन्होंने कहा कि मैं मूव तक उस समय तक इंतजार करता हूं जब तक कि उच्च अधिकारी नहीं जाने वाले हों, क्योंकि मेरा उनके साथ कन्फर्ट जोन बन चुका है। किन्तु यही कन्फर्ट और मूव करने की प्रवृति व्यक्ति की सोचने की क्षमताओं पर नियंत्रण लगाने लगती है। 

हम जब लगातार परिवर्तन की ओर जाते हैं तो अपनी सोच में नये तरीके का विकास देखते हैं। लोगों के साथ मिलना जुलना और नएपन के साथ में, नई सोच के साथ में लगातार घुलना मिलना आवश्यक रहता है। उनके विचारों के साथ आदान-प्रदान होने लगता है। हमने क्या सीखा है और वो व्यक्ति क्या ओब्जर्व करके आया है। जब उसका एप्रोच हमारे साथ रहेगा तो हम और अच्छे से इवोल कर पाएंगे, किन्तु कई बार इसी तथाकथित तौर पर एक टीम के साथ चलते चले जाना आपकी सोच के ऊपर नियंत्रण स्थापित कर देता है जो आपका रचनात्मक प्रभाव है वो धीरे-धीरे शून्य होने लगता है और वहीं पर कहीं ऐसा मूवमेंट सामने निकलकर आ गया जहां हमको ऐसी स्थिति को सामना करना पड़ा वहां सहज नहीं हो पाता। सोचता है कन्फर्ट पीछे छूट चुका है, इस उम्र में कैसे आगे बढ़ूंगा क्योंकि मुझे तो इन प्रवृतियों की आदत हो चुकी है। इसी वजह से टीम के मुगालते, ऐसी स्थिति जो निरन्तर एक सोच के साथ बाध्य करे वहां से बचना चाहिए। 

लोगों के साथ में मिलकर काम करना आवश्यक है, किन्तु लोगों के साथ में रहकर ही और उनके द्वारा लिए गए निर्णय के आधार पर ही खुद को लेकर चलना कई बार बहुत खतरनाक भी हो जाता है। इसी वजह से इन दोनों ही प्रवृतियों में व्यक्ति को यह समझने की चेष्टा करनी चाहिए कि जितने नएपन के साथ अवसरों की तलाश में चलेंगे, अलग-अलग तरीके से लेकर चलने का प्रयास साथ में रखेंगे उतने ही जीवन के अंदर निखरकर सामने आने वाले रहेंगे। किन्तु जब भी ऐसी स्टग्ड एप्रोच के अंदर व्यक्ति खुद को लेकर चलता है वहीं से भावी जीवन के फलाफल के अंदर एक कमी देख पाता है। व्यापार में नए को जितना जल्दी स्वीकार करते हैं, नए लोगों के आइडिया के साथ चलते हैं, आप देखेंगे कि जो भी नया विचार आता है उसको शुरुआत में स्वीकार नहीं करता। सोचता है कि किस तरह से लोग इसे स्वीकार करेंगे, उसके बाद आगे चलने वाले होंगे। किन्तु जैसे ही फ्रेम को चेंज कर दिया, सहज स्वीकारोक्ति बनने लगती है और आप मन के भीतर कुंठाओं को बिलकुल बसने नहीं देते। कई बार एक जगह से दूसरी जगह की शिफ्टिंग लोगों के साथ में व्यक्ति के मन में एक डर को जन्म देने लगती है, जिससे बचने की आवश्यकता है। आप अपने आधार पर चलने वाले व्यक्ति हैं। जब भी चलें अपनी स्वतंत्र विचारधारा के साथ चलने का प्रयास जरूर करना चाहिए।

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