जीवन में टेंशन को करे इग्नोर ।



न जाने कहां-कहां से हम हमारे जीवन में टेंशन लाते हैं। जिसे इग्नोर किया जा सकता है, उसे भी बढ़ाते चले जाते हैं और परेशानियों का ऐसा पहाड़ बना देते हैं जिस पर बैठकर जीवन का सिर्फ धुंधलका सामने होता है। ये जो स्थितियां हैं सिर्फ ऑफिस कल्चर से सामने नहीं आती, पारिवारिक जीवन से निकलकर सामने नहीं आती। बहुत छोटी छोटी बातों के साथ हम ऐसी नेगेटिविटी को जन्म देने वाले हो जाते हैं। एक लाइन में खड़े हैं, किन्तु हम फस्र्टेड हो रहे हैं कि क्यों लंबी लाइन है, स्थितियां कब सुधरेगी। वहीं ट्रैफिक जाम है, वहां हजारों लोग फंसे हैं किन्तु वहां भी हम अपने लिए परेशानी को जन्म देते चले जाते हैं। छोटी-सी मशीनरी में खराबी आती है, तो लगता है कि हमारे साथ ही ऐसा क्यों होता है।

ऑफिस में बातचीत में लगने लगता है कि हमारे लिए नकारात्मकता या फिर साजिश रची जा रही है। हम यदि किसी और कामकाज के साथ संलग्न होना चाहते हैं, इंटरव्यू काल को अटका रखा है, ऐसा लगता है। छोटी छोटी बातें फस्र्टेशन को जन्म देती है। घर परिवार में हमसे किसी ने अच्छे से बिहेव नहीं किया, ऐसा लगने लगता है कि ये व्यक्ति विशेष नहीं सुधरा तो रिश्तों को खराब कर देंगे। ये प्रवृतियां अपने लिए यदि इग्नोरेंस की एप्रोच के साथ चलें, जहां सजगता की आवश्यकता नहीं है। ये सब कुछ सहज और स्वाभाविक स्थितियां हैं जो जीवन में आती-जाती है। किन्तु व्यक्ति खुद से उसे परेशान करता चला जाता है। 

हम अपने पास्ट को उठाकर देखे। 2020 गया ही, उसकी पूरी गणना करें तो आप देखेंगे कि कितने बेस लैस फीयर रहे, वास्तविक हद पर डर परेशानियां और चुनौतियां आई, किन्तु इसके साथ में बेस लैस पोजीशन को कितना लेकर आई। जब भी व्यक्ति अपने पास्ट के साथ में इस गणना के साथ लेकर चलेगा तो कहीं-न-कहीं ये समझेगा हमारा मन और हमारी मानसिक चेतना ऐसी नकारात्मकता को बारम्बार जन्म देती है और व्यक्ति उसके साथ में चलता हुआ अपने भीतर के जो अवसर, कर्म और संभावनाओं के द्वार है, उनको बंद करता चला जाता है और सिर्फ और सिर्फ ऐसी नकारात्मकताओं पर ही विचार करता है। एक अखबार जब सामने होता है वहां सकारात्मक और नकारात्मक खबरें है, हम क्या लेना चाहते हैं, नकारात्मक खबरों से कैसे सजग हो सकते हैं और सकारात्मक खबरों से खुद को कितनी प्रेरणा दे सकते हैं ये स्वयं पर निर्भर करता है। किन्तु  व्यक्ति को अपने नजरिये में बदलाव की आवश्यकता होती है।

 जो भी निराधार तर्क या कुतर्क या डर जो आसपास के लोगों द्वारा परोसे जा रहे हैं, उससे हम जितना दूर रहेंगे, जीवन उतना आनंदित होता चला जाएगा अन्यथा परेशानियां है जिसको लेकर हम अपनी लड़ाई भीतर ही भीतर लडऩी है। इससे आजाद होने की आवश्यकताएं बहुत जरूरी हैं।

Comments

  1. Thank you Vyas ji, for pointing this out. Indeed thoughts are like seeds we plant in our life. Its our choice which seeds (thoughts) we want to water (pay attention to). If we water good thoughts, good thoughts will definitely grow and will bring fruits.

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