रटने की बजाय समझने की प्रवृति विकसित करें ।

बचपन में कहा जाता था कि किसी भी विषय को रटने की ओर नहीं समझने की ओर जाओ। मंत्रों, युक्तियों और चौपाइयों के साथ भी यही स्थिति होती है। व्यक्ति पहले कंठस्थ करता है फिर समझकर हृदयस्थ कर लेता है तो मन के भीतर से आत्मिक भीतर से वो मंत्र, श्लोक कभी निकलते ही नहीं है और हमेशा जाग्रति के आधार उपस्थित रहते हैं। यदि हम रटने की स्थिति की बात करें, कहीं पर भी पहुंचना है, कोई व्यक्ति समझाता है यहां से सीधा जाइयेगा फिर दाएं मुड़े फिर लेफ्ट ले लीजियेगा, फिर कुछ दूर बाद दाएं जाने होगा, व्यक्ति उसे रटने का प्रयास करता है। पेन लेगा और नक्शा बना लेगा और समझ लेगा तो शायद आसानी से पहुंचता चला जाएगा। 

हम जीवन के अंदर भी कई बार ऐसी रटी रटाई स्थितियों के साथ चलने का प्रयास करते हैं कि वो व्यक्ति इस वजह से सफल हुआ या इस कार्य क्षेत्र में सफल हुआ, हम भी वहां चलते हैं इसी आधार पर चलते हैं किन्तु वहां उस रटी रटाई स्थिति की जगह अपने मन के भीतर के भाव को समझने की आवश्यकता है कि भीतर की रुचि क्या-क्या रही है। हमारे रास्ते कौन से है। हो सकता है कि आपके साथ में रचनात्मक विधा हो, अनुशासित हो, हो सकता है ओब्जर्व हो, हो सकता है आपकी मेमोरी के रिफलेक्शन बहुत अलग तरीके से हों, ये भी हो सकता है कि आपकी रुचि इतिहास में हो, ये भी हो सकता है कि आपकी रुचि मंत्रों के साथ हो, तकनीक, प्रबंधन के साथ हो, लोगों के साथ बातचीत करना अच्छा लगता हो, ये सारी ही वो प्रमुख स्थितियां है जो रटी रटाई विधा से अलग है और भीतर से उपजी हुई है। जो भी भीतर से उपजेगा उसके ऊपर व्यक्ति मनन लगातार करेगा और अपनी कामनाओं को हृदयस्थ करते चला जाएगा वहीं से वो सफलता के आधार को भी अपने जीवन के भीतर देख पाता है। 

आप स्मृतियों को एक बार फिर से सामने रखिये, आज से बीस-पच्चीस साल पहले, स्कूल, कालेज में रटना पड़ा था तो क्या वो आज है। शायद नहीं। किन्तु वहीं कुछ समझा था, और समझकर हृदयस्थ और कंठस्थ किया था, वो आज भी आपको रात को दो बजे भी या सुबह के चार बजे उठाकर पूछा जाए तो एकदम जुबान के ऊपर होगा। वजह क्या है कि हमने उसको आत्मसात कर लिया है। जो भी स्थिति आत्मसात होती चली जाएगी और भावी पीढ़ी को भी हम यही समझाने का प्रयास करेंगे कि आप जितना विषयों को आत्मसात करेंगे उतना ही संभावनाओं के साथ में सफलता और वहीं निष्कर्ष की प्रवृतियों को बहुत ज्यादा बल देते चले जाएंगे। इन दोनों ही स्थितियों में आज फर्क को समझने की आवश्यकताएं हैं।

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