ज्योतिष में बारह भावों पर सूर्य देव का प्रभाव ।

नवग्रहीय व्यवस्थाओं में सूर्य देव राजा है। वहीं आत्मा के कारक आधिपति ग्रह भी है। जो भी व्यक्ति जीवन में अनुशासन चाहता है, उसे सूर्य देव के केन्द्रिय बल की आवश्यकता होती है। वहीं श्रीसूक्त में वर्णन आता है कि आदित्य वर्णे वक्षोत्व बिल्व मायान्तर बाह्य आ लक्ष्मी यानि की आदित्य के वर्ण के समान उपमा है। 

रुद्राष्टाध्यायी में भी यही वर्णन आता है कि चन्द्रमा मनसो जात, चक्षु सूर्यो अजात, सूर्य, आत्मा, जगत। इन स्थितियों का वर्णित आधार क्या है जो भी व्यक्ति स्वयं के जीवन में लगातार प्रकाश की स्थितियों को समाहित करके अपने मार्ग को देखता है, निर्विघ्न तरीके से चलने का प्रयास करता है, सूर्य देव की उपासना करता है उसके भीतर एक अद्भुत तेज की आभा आने लगती है जिसको औरा कहते हैं, आभामंडल कहते हैं। ललाट पर अलग तरीके की चमक कहते हैं। ये सारा ही सूर्य देव का आधार मात्र है। 

सूर्य देव का जो दृष्टि प्रभाव है वो भी अद्भुत तेज कारक है। प्रथम भाव में बारह ही भावों में सूर्य देव विराजमान और चलायमान है और उनकी सातवीं दृष्टि होगी वो सप्तम भाव पर होगी तो व्यक्ति कर्मशीलता के आधार पर व्यापार में तो चलेगा ही, अपनी गृहस्थ को भी लगातार मोटिवेट करता रहेगा। वहां भी कई बार अधिकार के साथ बात रखने वाला होगा अगला व्यक्तित्व भी प्रभावित हो और कामकाज में बहुत अच्छे से संलग्न रहने वाला हो। द्वितीय भाव में सूर्य देव को अष्टम के ऊपर दृष्टि होगी जो हिडन प्रोबलम्स जीवन में बार बार आती है सबसे पहले व्यक्ति वहीं पर फोकस करता है। वहां से समाधान ढूंढ़ता है और उसके बाद ही आगे बढऩे की स्थितियों की ओर आता है। 

पराक्रम में सूर्य देव हो तो भाग्य के भरोसे व्यक्ति को नहीं बैठने देते। जहां भाग्य का सहयोग है वहां दुगुनी रफ्तार से चलने की शुरुआत करता है। आध्यात्मिक चिंतन की तीव्रता जीवन में समाहित करती है। चतुर्थ से दशम से संबंध हो तब भी ये पाएंगे कि आजीविका के साधन विकसित करने के बाद में उसमें नैतिक बल कितना है, स्व प्रबंधन किसी और को मैनेजमेंट सीखाने से पहले हम कितने मैनेज है। सूर्य देव की तेजकारक स्थितियां ये बताती है। 

पंचम से एकादश पर प्रभाव होता है तो सर्वांगीण लाभ जीवन में कैसे रिफलेक्शन में आएगा और लाभ का अर्थ यह नहीं है कि खुद के लिए मैटेयलिस्टिक हासिल किया जाए। पारिवारिक तौर पर सुख और समृद्धि को बढ़ाया जाए, ये भी है हम किस तरह से लोगों के लिए लाभ को संचित और सिंचित कर पा रहे हैं ये भी स्थितियां है। षष्ट से जब द्वादश के ऊपर प्रभाव होगा व्यक्ति प्रत्येक खर्चे पर नजर भी रखेगा तो वहीं कुछ पारिवारिकजन भी है वो भी खर्चे की स्थितियों के साथ है तो उसको भी टोकेगा। रास्ता क्या है, कैसे बढऩा है। सप्तम से जब यहां राशि भाव पर प्रभाव होगा तो व्यक्ति अपने नैतिक और आत्मिक बल के सहारे पहचाना जाएगा। सूर्य देव नीचस्थ स्थितियों में हो और उच्च राशि स्थान को सातवीं दृष्टि से देखेंगे तो यही प्रभाव देंगे। अष्टम से द्वितीयेश पर आभा होगा तब व्यक्ति धनागमन के साथ कुटुम्बीजनों के हितार्थ भी एक तेजकारक स्थितियों को निर्मित करेगा। जब भाग्य से पराक्रम के ऊपर संबंध होगा अपनी महत्वकांक्षाओं को नियंत्रित करके पराक्रम में तेजकारक स्थितियों को लाएगा जब यही संबंधी दशम से चतुर्थ के आधार पर होगा तो यहां हृदय लगातार उद्वेलित होता चला जाता है। ये कई बार देखा गया है। एकादश से पंचम पर संबंध होगा व्यक्ति अपनी संतान को वही सीखाना चाहता है जो उसने अभी तक अनुभव के साथ में हासिल किया है। और वहां उसका प्रभाव अलग तरीके से सामने आता है। द्वादश से षष्ठ पर जब भी प्रभाव हो, कोई भी ऋण जीवन में हो तो व्यक्ति विचलित हुए बिना रह नहीं सकता। अनिद्रा जनित रोग इसी वजह से देखे जाते हैं। तो इसी वजह से सूर्य देव की दृष्टि आपके किस भाव पर है उसके आधार पर अपनी तेजकारक स्थितियों को आधार जरूर बनाना चाहिए।

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