व्यक्ति का कार्य ही दिलाता है उसे सम्मान ।

 सम्मान हासिल किया जाए या सम्मान पद द्वारा प्राप्त हो या सम्मान करवाया जाए। इन तीनों ही स्थितियों में बहुत बड़ा अंतर है। सम्मान व्यक्ति अपने कार्य से प्राप्त करता है। कहीं किसी कार्य क्षेत्र में है, और चाहते हैं कि अगला व्यक्ति हमको जी लगाकर बात करें, सम्मान के साथ में हमारी बात को सुने, और आदरपूर्वक हमको जगह भी दे और जब भी हमारा नाम लेे तो इतनी तवज्जो के साथ में ले कि उसके अंदर मान की स्थितियां और आभा अपने आप झलकती हो। ये प्रत्येक व्यक्ति की आकांक्षा होती है। 

आप किसी पद पर है, तो आपको सहकर्मी सम्मान देते हैं। आप जब आते हैं तो उठकर खड़े होते हैं। ये सारी प्रक्रियाएं हमने देखी है। किन्तु इसके अलावा ये भी देखेंगे कोई व्यक्ति आपसे जीवन में मिला ही नहीं, किन्तु आपके मन में उसके प्रति इतना सम्मान है कि कभी भी आप उसका नाम लेते हैं तो जी के बिना नहीं ले पाते हैं। एक व्यक्ति जब सामने होगा तो उसको जबरदस्ती सम्मान देंगे किन्तु जैसे ही वहां से चला जाएगा उसके नाम की इतनी तवज्जो नहीं रह जाएगी या फिर जी या श्री लगाना या नाम को आदरपूर्वक लेना संभव नहीं होगा। किन्तु कुछ लोग ऐसी छवि भी छोड़कर जाते हैं, कार्य क्षेत्र से दूर भी हो गए, सेवानिवृत हो गए, तब भी उसके नाम के साथ सम्मान जुड़ा रहेगा। यह है उस व्यक्ति के कार्य की उपलब्धतता, जो धीरे-धीरे सामने आती है। जो भी पद पर होगा उसको तो सम्मान मिलेगा ही, किन्तु इसके अलावा क्या स्थितियां है, ये सोचने की आवश्यकता है। ये भी मान का आधार है तपस्या के साथ जुड़ा हुआ है। हमने कितना अपने जीवन को निखारा, कितना अनुशासन के साथ में चले, कितना लोगों से घुल मिलकर रहे और उस घुलने और मिलने में भाषा का गेप भी हमेशा रहा। 

हम किसी भी व्यक्ति की आवश्यकता पढऩे के ऊपर वहां तत्परता के साथ खड़े रहे, ये सारी ही पोजीशन है अंततोगत्वा व्यक्ति को सम्मान दिलाने वाली होती है। व्यक्ति चाहकर सम्मान ले नहीं सकता वो सिर्फ बनावटी होगा। किन्तु जब भी हमारे वर्षों की मेहनत का आधार एक ऐसा रिफलेक्शन लेकर आती है जब भी हम वहां कई दिनों के बाद पहुंचें तब भी अगला व्यक्ति खड़ा हो, हम से अच्छे से मुस्कुराकर मिले और कहे हमारे जाने के बाद वाकई में इस व्यक्ति ने ऐसा कार्य किया वर्षों के बाद इस जगह सम्मान इतना ही है। ये ऐसे माइल स्टोन छोड़कर गया जिसकी वजह से आज हम सभी लोग बेहतर तरीके से कार्य कर रहे हैं। तो सम्मान की ये तपस्या हम जीवन के साथ में लेकर चलें किन्तु इससे कोई भी अपेक्षा नहीं रखे। हम जिस फ्लो के साथ है कार्य करते रहें, निष्ठापूर्वक करते रहें, सम्मान की स्थिति होती है वो अपने आप मिलती चली जाती है। ईश्वर प्रदत्त व्यवस्था के साथ कर्म को जब जोड़कर देखता है तो उसे जबरदस्ती सम्मान करने की आवश्यकताएं नहीं रहती।

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