चन्द्र-मंगल "लक्ष्मी योग"
अमूमन जब भी हम किसी योग एवं युति के बारे में सुनते हैं और चर्चा जब स्वयं की ही कुण्डली की हो रही हो तो मन में हर्ष और बढ़ने लगता हैं कि हमारी कुण्डली में ऐसा योग बना हुआ हैं और जब उस योग के आगे मां लक्ष्मी का नाम जुड़ जाये तो उत्साह देखते ही बनता हैं। एक ऐसा ही योग हैं चन्द्रमा और मंगल की युति से बनने वाला लक्ष्मी योग। जब मन के आधिपति चन्द्रमा ग्रहों के सेनापति मंगल के साथ युति कर रहे हों तो व्यक्ति के जीवन में उसका प्रभाव अलग तरह से निकल कर आता हैं।
वहीं बुनियादी तौर पर आप यहां आप गौर करके चलें कि वर्तमान समय में जब हम भौतिकता के इस युग में आर्थिक संबल की बात करते हैं तो व्यक्ति बहुत सारी वस्तुओं, जमीन आदि के बारे में सोचने लगता हैं और इस योग के बारे में ऐसी स्थितियां मिलती भी हैं।
मैनें कई बार कई कार्यक्रमों में भी कहा हैं कि मां लक्ष्मी का आगमन जब व्यक्ति के जीवन में हो और वो उस आगमन के साथ किसी भी तरह का दोष नहीं पाये तो जीवन का सौंदर्य बढ़ता हैं। ठीक इसी तरह जब हम इस योग की बात करतें हैं तो ये योग अपितु व्यक्ति को ख्याति भी देता हैं, विरले ही ऐसे लोग होते हैं जिनको मां सरस्वती और मां लक्ष्मी की कृपा एक साथ प्राप्त हों। ये योगायोग कुछ ऐसी ही स्थितियों को निर्मित करता हैं।
व्यक्ति यदि क्यों का जवाब खोज ले तो श्रद्धा बिना तर्क के बढ़ती हैं यहां इस योग के बारे में भी आप सोच रहें हो कि ऐसा क्यों हैं तो इस बात को समझने की ओर जाते हैं कि जब मन के आधिपति चन्द्रमा अपने मित्र ग्रह अग्नि तत्व प्रधान भूमिसुत मंगल के साथ हो तो मन के भीतर की ऊर्जा व्यक्ति को एकाग्रचित्त करती हैं और जब आपने किसी अपने लक्ष्य की संभावना को कर्म के साथ जोड़ा तो वहां एकाग्रता होनी आवश्यक हैं।
मन में एक विचार आता हैं कि मुझे व्यापार करना चाहिए, अब उसमें कोई संशय ना रह जाये और आप उसी कार्य की ओर पूरी ताकत के साथ अगले ही क्षण लग जायेें तो प्रभाव चमत्कारी तौर पर सामने आता हैं। आप उठते बैठते, सोते जागते उसी लक्ष्य के बारे में सोचते हैं और जब ऊर्जा इतनी केन्द्रित हो जाती हैं तो फिर लक्ष्य का नाम सफलता कर दिया जाये तो उत्तम हैं।
चन्द्रमा द्रुतगामी ग्रह हैं और मंगल नवग्रहीय व्यवस्था के सेनापति हैं तो इसी वजह से ये आधार नियामक तौर पर व्यक्ति को आर्थिक स्तर पर नये से नये सौपान देता हैं।
यहां एक प्रश्न ये भी उठता हैं कि जब चन्द्रमा नीचस्थ हो यानि वृश्चिक राशि में हो तो मंगल वहां स्वग्रही हो जायेंगे तो इस युति के कैसे फलाफल मिलेगें क्योंकि यहां मन के आधिपति निर्बल हैं तो सिर्फ ऊर्जा का क्या करें। इसी स्थिति में व्यक्ति जिस काम की ओर शुरूआत कर दें बस वहां लगा रहें तो अंततोगत्वा वहां पर भी बेहतर परिणाम मिलते हैं।
अब वहीं ये युति यदि मकर राशि में बन रही हो तो ऊर्जा अपने प्रखर तेज के साथ होगी किंतु मन का आधार यहां पर भी व्यक्त्वि में कुछ ऐसे निर्णय को लाने की संभावनाओं को लेकर आयेगा जिसमें निरंतर गलत और सही का अंतर मिटता चला जाता हैं। मैंने एक और स्थिति महसूस की हैं कि मिथुन और कन्या राशि स्थान में ये युति अपने प्रभाव को देती हैं किंतु संतुष्टी की उपलब्धता कम रहती हैं।
तो आपकी कुण्डली में भी ये युति बन रही हो तो जीवन के पिछले हिस्से के साथ एक नजर दौड़ानी चाहिए कि किस स्वरूप में क्या क्या मिलता चला गया।
Yah tab phalibhoot hota jab chandrma ke ansh kam ho or magal ansh jyada .
ReplyDeleteAap par ishwar ke ashirwadon ki varsha hamesha hoti rahe
जी धन्यवाद
Delete🌹🙏
DeleteSir ye yti yati bhagya bhav me tula rashi me shani ke saath ho to Kya yah yog Vish dish se garasit home ki vajah se kaam nahi karega jabki yaha chandrama aur mangal dono hi degree wise nirbal hai
DeleteJay ho Vyas jee Kalyan ho
ReplyDeleteतुला लग्न की कुंडली मे 2nd वृश्चिक का चंद्र और 10th कर्क के मंगल गुरु हो तो क्या परिणाम देगा?
ReplyDelete4th मकर वक्री शनि है
Agar chandar mangal ek saath ho kundli main kya hota hai Tula Rashi Tula lagana
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