मार्गशीर्ष मास का महत्व I

 मासों में मार्गशीर्ष मास मैं ही हूं-श्रीकृष्ण

मार्गशीर्ष माह को भगवान श्रीकृष्ण से भी सम्बंधित माना जाता है। श्रीकृष्ण के उपदेशों को जीवन में उतारने के लिए वैसे तो प्रत्येक दिन सुलभ होता ही है किन्तु मार्गशीर्ष में ऐसे प्रयास करने से जीवन में सार्थक हदों को प्राप्त करने वाला हो जाता है। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन ने अपनों को सामने देखकर युद्ध से इनकार कर दिया तो कृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया था। यही वजह है कि इस माह गीता जयंती भी मनाई जाती है। स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में मार्गशीर्ष मास की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि-

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।

मासानां मार्गशीर्ष स्हमृतूनां कुसुमाकर:।। 

भावार्थ- गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम, छंदों में गायत्री तथा मास में मैं मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसंत मैं ही हूं। मार्गशीर्ष माह में गंगा जैसी पवित्र नदियों पर स्नान करने से दोष, रोग और अन्य परेशानियों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

मार्गशीर्ष माह में कालभैरव जयंती, उत्पन्ना एकादशी, प्रदोष व्रत, मार्गशीर्ष अमावस्या- (जिसे पितृ अमावस्या भी कहते हैं), धनु संक्रांति- सूर्य देव 15 दिसंबर के दिन धनु राशि में प्रवेश करेंगे, मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती, भगवान दत्तात्रेय जयंती तथा मार्गशीर्ष पूर्णिमा जैसे दिनों में भगवान श्रीकृष्ण की विधि-विधान से नियमपूर्वक की पूजा-आराधना से व्यक्ति के जीवन में पुण्य फलों का उदय होने लगता है।

मार्गशीर्ष महीने में सूर्योपासना का भी बड़ा महत्व है, क्योंकि सनातन धर्म में मार्गशीर्ष को सूर्य देवता को समर्पित माह माना जाता है। इसी कारण इस माह सूर्य देव की नित्य आराधना करने से व्यक्ति के जीवन के भीतर प्रकाश की लौ जगमगाने लगती है। इस माह में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ यथाशक्ति गरीबों को दान करने तथा प्रतिदिन गाय को रोटी-गुड़ खिलाने से भी जीवन में आ रही दिक्कतें-बाधाएं दूर होने लगती है।

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