क्यों है बृहस्पति की दृष्टि में अमृत II Vaibhav Vyas

                                               


                                                       क्यों है बृहस्पति की दृष्टि में अमृत

प्रत्येक ग्रह की दृष्टि के अलग-अलग मानक होते है तथा उसी मानक के आधार पर हम ये देख पाते है कि प्रमुखतया जो बृहस्पति, शनिदेव और मंगल की दृष्टिया है उनके साथ कुछ विशेष आधार भी जुड़े हुए है, बृहस्पति के साथ पंचम और नवमं विशेष दृष्टियों का आधार है क्योंकि बृहस्पति देवगुरु है तथा जिस ग्रह के पास 12 ही भावों में सबसे अधिक कारकत्व हो उस ग्रह को कहीं ना कहीं संवेदनाओं से युक्त माना जाता है। 

अमृत इति अनन्त यानि ज्ञान का पर्याय अनन्त है तथा जो भी व्यक्ति ज्योतिष का छात्र है उसे ये ज्ञात है कि 12 ही भावों में त्रिकोण का महत्व अधिक है। बृहस्पति जहां भी विराजित होंगे वहां से अपनी दृष्टि के साथ एक त्रिकोण का आधार बना चुके होंगे। जैसे कि द्वितीय भाव में हुए तो धन भाव में खुद हुए, जो इनका कारक स्थान है। रोग, ऋण और शत्रु पर इनकी दृष्टि होगी तो वहीं 9वीं दृष्टि कर्म भाव पर होगी और 7वीं दृष्टि अष्टम भाव पर रहेगी। जो कि सारे ही ग्रहों की नैसर्गिक दृष्टि है, प्रमुखतया आप ये देखेंगे कि यहां धन, ऋण और कर्म का त्रिकोण बन गया। इन तीनों ही क्षेत्रों में बृहस्पति प्रमुख हस्तक्षेप रखेंगे।

जीवन के सारे सुख हो, संतान सुख हो, संतान से सुख हो, धन की अनन्त महिमा हो या वाणी का आधार हो ये सब कुछ बृहस्पति के साथ जुड़ा रहेगा। मैं यहां ये भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि आपकी कुण्ड़ली में बृहस्पति जहां पर भी दृष्टि निष्पेक्षण करें, वहां वृद्धि के सरोकार स्थापित करने के लिए आपको निरंतर कर्म में अपनी उपासना पद्धतियों को बृहस्पति के साथ जोड़ना चाहिए। जहां ज्ञान है वहां अंतर्चेतनाओं में सकारात्मकता है और वहीं से जीवन में सद्बुद्धि का प्रादुर्भाव है। इसी वजह से बृहस्पति की दृष्टि में अमृत है। 


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