निराशा को जीवन से करें दूर ।

 कोई बहुत बड़ी व्यापारिक डील थी, हमको अपने क्षेत्र का अनुभव था, एक बहुत बड़े ओहदे के व्यक्ति को यह समझाना था कि हम किस तरह से कार्य करते हैं। हमारे कार्य की रूपरेखा क्या रहती है। आप हमसे जुड़ते हैं तो क्या बेनिफिट हो सकता है। वहीं हम नर्वस हो गए उसी नर्वसनेस की वजह से आया हुआ मौका पूरे तरीके से गंवा बैठे। एक क्षेत्र के अंदर 15 वर्षों से लगातार हम स्पेशिफिक फील्ड को संभाल रहे हैं, वहां जॉब की पोजीशन चल रही है। एक नई कंपनी का इंटरव्यू आता है, वहां पर भी संभावनाओं के बारे में सोचने लगते हैं कि जो नए लोग आ रहे हैं न जाने कितना अपडेट होकर आ रहे है, उनकी बॉडी लेंग्वेज और बात का तरीका अलग है, हम उसी ढर्रे पर चल रहे हैं तो निराशा आ जाती है और आया मौका गंवा देता है। 

जीवन में दो तरीके की स्थितियां आती है, सामान्य जीवन के अंदर तो हम बहुत अच्छे से आसानी से बात कर लेते हैं, किन्तु कोई मौका आता है तो हम निराश हो जाते हैं। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो सामान्य जीवन में निराशा के साथ रहते हैं, किन्तु निर्णायक मौके पर इस तरह से अपनी बातचीत को रखते हैं जैसे पूरे तरीके से पर्सनलटी ही चेंज हो गई हो। ये इंटरेसिक या मूलभूत प्रकृति है। जब हम किसी इंटरव्यू की ओर जाएं, लम्बे समय के गेप के साथ हो, तो वहां ये परेशानी होती है कि लम्बे समय इंटरव्यू दिया ही नहीं तो घबराने लगते हैं और फेस करने से कतराते हैं वही नर्वसनेस का माध्यम बनता है। जब आप किसी डील की ओर जा रहे हैं, लगातार यही सोचते रहें कि ये नहीं हुई तो क्या होगा, हुई तो हम कहां पहुंच सकते हैं, यही जद्दोजहद मन के भीतर निराशा के भाव को लाती है। वहां आवश्यकता है उस क्षण के साथ में जुड़कर कार्य करने की। हम क्या बता रहे हैं, जो होगा, वो देखा जाएगा, समय का प्रभाव, दशाएं जो व्यवस्थाएं देगी वो बहुत बढिय़ा है। आज हमको अच्छे से प्रफार्म करना है। स्टेज के ऊपर जाते हुए पहली बार पांव कांपे थे, किन्तु दस, बीस बार का अनुभव हो गया तो उसे अभ्यास की श्रेणी में लिया जाता है। ये अभ्यास प्रत्येक क्षेत्र के अंदर आवश्यक है। 

जब एक लेखक किसी भी विधा के साथ में चलता है तो उसको त्रुटियां लगती है, तो सबसे पहले खुद से बात करता है फिर कहीं जाता है। इसी तरह से किसी भी क्षेत्र से जुड़े हुए हों, इंटरव्यू में क्या पूछा जाता है, कैसे स्वाभाविक रहना है, एक जॉब पास में है, दूसरे जॉब की ओर जा रहे हैं तो चिंता की आवश्यकता क्या है। एक जगह तो थोड़े से समझौते के साथ जुड़ ही जाएंगे, ये चीजें विश्वास देती है। 25 वर्ष तक एक व्यक्ति कंपनी के अंदर चलता रहा, नौकरी छूटती है, परेशानियां आती है, हम पूरी तरह से निराशाओं के साथ घेर लेते हैं कि अब तो शायद रिटायरमेंट का टाइम आ गया है। ऐसी प्रवृतियों से मुक्त रहकर नर्वसनेस से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। जब भी निर्णायक कार्य की ओर जा रहे हो तो सूर्य उपासना को जीवन का आधार बनाकर चलिये। प्रयास करें कि श्रीमद भगवत गीता का अध्ययन भी जरूर करें जिससे निराशाएं दूर होकर आशा के दीप जगमगाने लगते हैं।

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