जीवन में अवसर नहीं आता है बार बार

किसी व्यक्ति को यदि एक कंपनी छोडऩी हो तो उससे पहले नोटिस पीरियड सर्व करना होता है। जब भी आप मेल डालेंगे तो उसके बाद कुछ समय अंतराल मिलेगा कि 90 दिन या 60 दिन के लिए यहां अपनी सर्विसेज देनी है। जहां पर आप अपने साथ जुड़े हुए सारे ही डाक्यूमेंटस को अगले व्यक्ति विशेष के सम्मुख रख पाएं। उन्हें अपने कार्य हस्तांतरित कर पाएं। कोई नया व्यक्ति आ भी रहा है तो उसे समझा पाएं, ये कार्य स्पिशिफिक्स लेवल पर कैसे पूरा होगा। ये एक समयबद्ध प्रोसेस है जिसके साथ चलना होता है। 

वहीं कोई कंपनी व्यक्ति को नहीं चाह रही है कि उसे जोड़कर नहीं रखा जाए, वो भी नोटिस देती है जिससे अगले व्यक्ति को प्रीपेरेशन का मौका मिलता है, कैसे नई जगह जा सकते हैं, कैसी अपनी संभावनाओं की तलाश कर सकते हैं। उसी के साथ में व्यक्ति आगे बढ़ता है। खेल में भी जो व्यक्ति बैंच पर होता है, उसे मालूम होता है कि इस समय के बाद में मेरा अवसर सामने होगा। जब भी एक्जामिनेशन के लिए होते थे वहां पर भी एल्फाबेटिकल आर्डर में ये मालूम होता था कोई प्रेक्टिकल है या और कोई ओरल एग्जाम है, तो अब हमारी बारी आने वाली रहेगी। यानि कि पहले से यह स्थितियां ज्ञात होती है। किन्तु जीवन में जो अवसर आते हैं, वो किसी भी तरीके का नोटिस देकर नहीं आते, मेल नहीं आती, स्ट्रक्चर प्रोसेस में हमको मालूम नहीं होता कि ये अवसर कब हमारे सामने आने वाला होगा। इसके लिए पहले से तैयारी करनी होती है।

 एक कलाकार है जिसने 30 वर्ष तक 35 वर्ष तक, 40 वर्ष तक लगातार संघर्ष किया। प्रत्येक क्षण खुद को झोंक कर रखा अपनी जो क्रियेटिव पोजीशन को एक्सपलोर करता चला गया। किन्तु 35-36 वर्ष के बाद में जाकर समय की बद्धताओं के साथ में जो ये दशाओं की स्थितियां में उसको एक ऑफर मिलता है, वहीं से जिंदगी बदलकर रह जाती है। अब वही व्यक्ति 17-18 साल तक मेहनत नहीं करता और जब अवसर सामने आता उसी समय उसको खुद को प्रजेंट करने की आवश्यकता होती तो क्या वो इतनी एक्सपर्टीज के साथ वहां पहुंच सकता था, शायद नहीं। अवसर आता हम तैयार नहीं होते। जो रोल ऑफर हो सकता था वहां कहीं न कहीं बड़ी कमी रह जाती। 

प्रत्येक क्षेत्र में ऐसी ही स्थिति है। आपको किसी पब्लिशिंग हाउस से ऑफर मिलता है, कि आप अपने लेखन को छापने की ओर जा सकते हैं। किन्तु जैसे ही स्क्रिप्ट पहुंचती है वहां खामियां होती है, अवसर मिला किन्तु हम उस अवसर से बहुत पीछे हटकर रह गए। इसी वजह से प्रीपरेशन की आवश्यकता होती है। टाइम और टाइमिंग दोनों ही महत्वपूर्ण है। जब भी किसी व्यक्ति को वक्ता के स्तर के अपना भाषण रखना है, आपके पास में कैसी तैयारी है, आप किस आधार पर बातचीत को रख सकते हैं। वर्षों की मेहनत जब एक बार स्टेज के ऊपर एक बार किसी पुस्तक के रूप में सामने आती है तो ये मालूम चल जाता है कि ये तपस्या के साथ में निकली हुई स्थिति है और वहीं से दशाएं और तथाकथित तौर के ऊपर चलता समय जीवन के अंदर नई प्रेरणा को लेकर आता है। वहीं से हम एक नया सूर्य उदित होता हुआ देखते हैं। तो बारम्बार वर्षों तक, दिनों तक, महीनों तक, घंटों तक, मिनटों तक जो व्यक्ति स्वयं को ढालता रहता है, एक हुनर के साथ में जाग्रत रखता है, आगे जाकर वहीं से उसके लिए अवसरों की प्राप्ति भी होती है। कई बार सर्कमचांसेज की वजह से भीतर के हुनर को छोडऩा पड़ता है, किन्तु छोड़े नहीं। सर्कमस्टांसेज थी, घर परिवार की जिम्मेदारी थी, किन्तु जहां आपकी रुचि थी, उस लौ को मन के भीतर हमेशा प्रज्जवलित करके रखिये। दस साल बाद, बीस वर्ष बाद कहीं-न-कहीं समय आएगा और आपके लिए सब कुछ परविर्तित करके रख देने वाला होगा। तब तक उस विषय के साथ जुड़कर रहते हैं है या नहीं, यह सबसे महत्वपूर्ण स्थिति है।

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