कार्य स्थल पर एक व्यक्ति को पूर्ण रूप से प्रोत्साहन मिला जिसमें आर्थिक संबल भी हो सकता है और उसकी जो स्वीकारोक्ति उसके सहकर्मियों के साथ बनती है उसमें एक दृढ़ता भी हो सकती है। जब भी व्यक्ति को ऐसा प्रोत्साहन मिलता है तो अगले दिन दुगुनी ऊर्जा के साथ अपने कामकाज की ओरं बढ़ता है।
जब भी निराशाओं के भाव मन में पनपते हैं वह भले ही ऑफिस में मिली हुई किसी नकारात्मकता से हो, व्यापार में सैड बैक की वजह से हो, तो सबसे पहले चेहरे की मुस्कुराहट को खोने का कार्य करता चला जाता है। खुद को संकुचित करता चला जाता है, जो भावी संभावनाएं प्रत्येक क्षण में विद्यमान रहती है उसको कहीं-न-कहीं वह गायब सा कर देता है। जो एक सोच वैचारिक स्तर के साथ में दृढ़ होती चली जा रही थी, वह भी पूरे तरीके से बिखरती चली जाती है।
हमारे भीतर का आवरण यह तय करता है कि हम किस ओर चलेंगे अपनी इग्नोरेंस की पॉवर को बढ़ाने की भी ऐसे व्यक्ति विशेष को आवश्यकता होती है। कई बार बेसलेस नेगेटिविटी चलती है जिसका क्षणिक तौर पर असर हमसे था, उससे इतना परेशान होने की आवश्यकता बिलकुल भी नहीं थी किन्तु हम कहीं-न-कहीं परेशान होते चले गए। इन दोनों ही स्तर पर व्यक्ति को तटस्थ होकर सोचने की आवश्यकताएं रहती है। जब भी ऊर्जा मिली, जब भी एक गेन मिला, वो व्यक्ति विशेष हम ही है। किसी वजह से नकारात्मकता मिली है तो भी व्यक्ति विशेष हम ही है। कोई भी नेगेटिव व्यक्ति पूरी तरह से बिखरने का कार्य नहीं कर सकता, जब तक कि वो मन से पूर्ण रूप से संबल प्राप्त करके चल रहा है और कोई भी पॉजिटिव पोजीशन उसको उस स्तर के ऊपर ऊर्जावान नहीं कर सकती, जहां कई बार ओवर कांफिडेंस का लेवल भी आ जाता है इसी वजह से तटस्थ बने रहने की आवश्यकता रहती है। यह हमेशा हम अगर ध्यान रखकर चलें। मन के भीतर एक ऐसा इंटरनल कम्युनिकेशन बनाते चले जाएं कि जो कि प्रत्येक क्षण हमारे साथ स्व-संवाद की स्थितियों को लेकर आए तो पचास प्रतिशत परेशानियों का हल तो व्यक्ति अपने भीतर ही खोज लेता है और उसके बाद बाहरी वातावरण की स्थितियां भी संभलती चली जाती है।
True
ReplyDeleteजी धन्यवाद
ReplyDeleteYes ji. But how to implement. 90 percent we are negetive.
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