ज्योतिष और जिज्ञासा । Astrology and Curiosity

जिज्ञासाओं के साथ में आप ज्योतिष विषय को सीखने की शुरुआत करते हैं। यह यात्रा स्वयं की कुंडली के साथ में शुरू होती है। जब ये यात्रा स्वयं की कुंडली से आगे निकलकर किसी और होरोस्कोप के अध्ययन की ओर पहुंचती है, तो वहीं से वास्तविक यात्रा की शुरुआत होती है। किन्तु मैं हर दिन देखता हूं आप लोग आते हैं, चर्चा करते हैं और उस चर्चा के साथ में नकारात्मकता है, चांडाल दोष बना हुआ है, विष दोष बना हुआ है, कालसर्प योग बना हुआ है। इस पर बहुत अधिक वर्क किया जाता है। 

जब भी किसी परेशानी की बात होगी व्यक्ति जानकार होगा तो वह सीधा यह कहेगा कि कन्या की कुंडली है, सप्तम भाव के साथ में वृहस्पति विराजित हैं। इसी वजह से वैवाहिक जीवन में दिक्कत आई। अष्टम के मंगल हैं। इस वजह से विवाह की ओर जाएंगे, क्या-क्या ध्यान रखना है और कितनी दुविधाएं आएगी। इस बात को फिर से समझना है। व्यक्ति पूछता है कितनी दुविधाएं आएगी। ये कभी भी गौर नहीं किया जाता कि इस पोजीशन के अंदर मंगल स्वग्रही हैं, मंगल उच्चस्थ स्थितियों में है, बस अष्टम के मंगल हैं और हम पूरे तरीके से भयाक्रांत होकर रह गए। थर्ड हाउस है, वहां पर चांडाल दोष बना हुआ है, किन्तु इस बात के ऊपर गौर नहीं किया गया कि राहू वहां उच्चस्थ विराजमान हैं। जब उनकी दशा आएगी तो किस तरह के फलाफल मिलने वाले होंगे। नवम भाव में शनि देव की स्थितियां हैं, वो भी चन्द्रमा के साथ में है, किन्तु चन्द्रमा वहां पर स्वग्रही हैं। डिग्रीज में बारह से अठारह के मध्य है और शनि देव उदित अवस्थाओं में है। 

जब भी हम नकारात्मकता के सिरों को ही देखकर और समझ कर चलने वाले होते हैं तो वहां से जो संभावनाएं है उसको शून्य करने का कार्य कर देते हैं। विष दोष बना हुआ है। चांडाल दोष भी साथ में है, किन्तु साथ ही साथ में चतुर्थ भाव में रोचक योग की स्थितियां है। हम इसे क्या कहेंगे। क्या उस संभावना को नकार दिया जाए पूर्णतया। वहीं पर राहू और चन्द्रमा की स्थितियां षष्ट भाव में साथ में है, राहू वहां पर आपके शत्रु हंता की स्थितियों को बना रहे हैं, किन्तु हमने सिर्फ और सिर्फ मानसिक स्तर पर क्या चिंताएं मिल सकती है, उसका ही आवरण यदि ओढ़ लिया तो हम कहीं-न-कहीं एक सिरे के साथ में जाने का कार्य करते हैं। 

मैं आपसे बार-बार कहता हूं कि जब भी आपकी किसी भी विषय के अध्ययन की ओर जाएं उस कुंडली में यदि कोई नकारात्मकता है या संघर्ष के स्वरूप योग बने हुए हैं। दूसरे स्तर पर कौन-कौन से ऐसे योग भी हैं जो आपकी संभावनाओं को शीर्ष की ओर लेकर जा सकते हैं। तो उसके ऊपर भी गौर करने की उतनी ही आवश्यकताएं होती है। जब भी आप इस विषय की ओर जाएं सिर्फ एक आंख के साथ में देखने का कार्य बिलकुल भी नहीं करें। नव ग्रहीय व्यवस्था है, बारह भाव है, सत्ताईस नक्षत्र की स्थितियां है। साथ में अनंत कोटि बन रहे योग हैं, जिनको इन बारह भावों के साथ में हमको समझना होता है। अपने अनुभव के साथ में परिलक्षित करना होता है। वहीं से जाकर हम यह समझ पाते हैं कि किस तरह की उपासना पद्धतियों से दुर्योगों की स्थितियों को एक तरह से मध्यम दर्जे पर लाया जा सकता है। तो वहीं पर जो योगायोग हमारे जीवन को सुविधा दे रहे हैं उसके ऊपर और उसके साथ में मिलकर हम अपनी जीवन को कितना आगे बढ़ा रहे हैं। तो इस बात को आप हमेशा अपने मन-मस्तिष्क में स्थिर करके चलते हैं तो किसी भी गणना में तटस्थ रह पाते हैं।

Comments