सूर्य दृष्टि प्रभाव में हैं अत्यंत तेज || Vaibhav Vyas

 

सूर्य दृष्टि प्रभाव में हैं अत्यंत तेज

जिस तरह से देवगुरु बृहस्पति की दृष्टि में अमृत है, शनिदेव की दृष्टि में व्यक्ति को उस भाव के साथ कर्म निष्ठा देने का आधार है, मंगल की दृष्टि में अग्नि कारक तत्व प्रधानता है, चन्द्रमा की दृष्टि में एक सौम्य आधार है। बुध जिस भाव पर दृष्टि निक्षेपण करते है, उसी भाव के साथ जुड़े हुए तत्वों में लचीलापन देते है। तो वहीं शुक्र उस भाव के साथ जुड़ी हुई भौतिकता में आकर्षण बढ़ाते है, राहु-केतु उस भाव के साथ जुड़ी हुई व्यक्तिगत क्षमताओं में संशय रूपी तीव्रता देते है। तो वहीं सूर्यदेव की दृष्टि में अत्यंत तेज है। 

एक उदाहरण के साथ बात करूं तो आप ये पाएंगे कि यदि सूर्यदेव लग्नस्थ हो, तो सप्तम भाव पर दृष्टि होगी। व्यक्ति अपने गृहस्थ से बहुत अधिक अपेक्षाएं रखेगा। कभी प्रशंसा करेगा तो कभी आलोचनाओं के साथ चलेगा। व्यापारिक साझेदार पर भी कामकाज के प्रति एक दबाव रखने वाला होगा। कुल मिलाकर अंगे्रजी में जैसे हम डोमिनेट करना कहते है ऐसी ही कुछ प्रवृत्तियां सामने आती है। 

तो वहीं आप ये भी पाएंगे कि यदि सूर्यदेव द्वितीय भाव में हो और अष्टम भाव पर दृष्टि हो तो व्यक्ति सबसे पहले छुपी हुई समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करेगा, उसे सामने लाएगा और समाधान होने पर हृदय को उद्वेलित करने वाला होगा। 

पराक्रम से भाग्य पर दृष्टि होगी, तो मौका मिलते ही अपने पूरे ही तेज के साथ वो व्यक्ति कर्म के साथ कर्म के आधार पर बढ़ेगा। आध्यात्मिक तीव्रता मन के भीतर हमेशा जाग्रत होगी।

चतुर्थ से दशम पर जब दृष्टि होगी तो जो साधन मिल जाएगा। वहां उसका आधार को तीव्रता से हासिल करने की ओर जाएगा। इच्छा शक्ति बलवती रहेगी। 

पंचम से लाभ पर जब दृष्टि होगी तो प्रत्येक लाभ के प्रति आकृष्ट होकर वहां पर अपने तेज तत्व को स्थापित करेगा। मानसिक स्तर पर लाभ की आकांक्षा कभी शांत नहीं हो पाएगी। 

द्वादश पर दृष्टि खर्चों पर पूरा ध्यान केन्द्रित करवा कर रखेगी तो वहीं व्यक्ति किसी कार्य-व्यवसाय में हो तो वो रोकने-टोकने से कभी किसी से नहीं हिचकिचाएगा। जब प्रथम भाव पर दृष्टि हो तो आप ये समझ लीजिये कि चित्त हमेशा एक जगह केन्द्रित लक्ष्य संधान की ओर अग्रसर रहेगा। नैतिकता ऐसे समय में प्रबल रहती है। 

वहीं द्वितीय भाव पर दृष्टि कुटुम्बकीयजनों के साथ वैचारिक विद्रोह का बारम्बार विद्रोह का आधार बनाती है। अपनी बात मनवाने की कोशिश भी पूरजोर तरीके से होगी। 

वहीं पर पराक्रम पर दृष्टि व्यक्तिगत पराक्रम और पुरूषार्थ को ऐसे आधार पर हमेशा हावी रखती है तथा व्यक्ति कभी भी अपने मूल तत्व, पुरूषार्थ को भूलता नहीं है। 

चतुर्थ भाव पर दृष्टि हृदय को उद्वेलित करती है तो साथ ही साथ कहीं ना कहीं व्यक्ति हृदय संबंधित रोगों से भी ग्रसित होता है। मानसिक सुख प्राप्त होने की चेष्टाएं नाकाम सिद्ध होती है। 

पंचम भाव पर दृष्टि क्षमताओं में तेज लेकर आती है तो साथ ही साथ आप ये भी पाएंगे कि संतान पक्ष के साथ बारम्बार अपने अनुभवों को रखने का प्रयास करना, अपने सिद्धांतो को ही सही मानना उस व्यक्ति के लिए मुख्य आयाम रहता है। 

षष्ठ भाव पर दृष्टि ऋण और शत्रुओं को कभी जीवन पर हावी नहीं होने देती। तो साथ ही साथ में व्यक्ति कई बार अस्थि जनित विकारों से परेशान रहता है।

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