शनिदेव की महादशा के प्रभाव
19 वर्ष का समय जो महान्यायाधिपति सूर्य पुत्र यम के अग्रज शनिदेव की महादशा के साथ बीतता हैं तो व्यक्ति स्वयं को यदि इन दिशा के शुरूआत में खड़ा करके देखें तथा इस दशा की पूर्णता के बाद देखें तो सोच में व्यवहार में कार्य शैली में प्रत्येक जगह परिवर्तनों की झलक स्पष्टता के साथ मिलने लगती हैं। व्यक्ति जब अपने कत्र्तव्यों को बोध कर लेता हैं तथा जीवन के प्रत्येक जद्दोजहद को स्वीकार करके चलता हैं तो वहीं से एक निखार की तरफ आने की शुरूआत कर चुका होता हैं। आप यहां गौर किजिये कि शनिवार को मंद वासरे की संज्ञा भी दी जाती हैं। जो ग्रह व्यक्ति को बारम्बार ये बताते हैं कि धीरे चलों, एकाग्रचित्त होकर चलों अपने आज के कर्म के प्रभाव को भविष्य के साथ जोड़ते हुए चलों। संघर्ष भौतिकता की प्राप्ति के लिए जब भी हो तो आध्यात्मिकता दूर होने लगती है तथा जब एक बार आध्यात्मिकता अपने शीर्ष को थाम लें तो भौतिकता फीकी लगने लगती हैं।
आप सोच रहें होगें कि मैं दशा की बात करते हुए कहां दर्शन के सिरों के साथ चलता जा रहा हूं किंतु वास्तविकता में जीवन दर्शन का ही स्वरूप हैं और इस दर्शन के प्रतिबिम्ब में स्वयं को देखना हैं तो शनिदेव की महादशा के साथ आप चलते रहीये।
जब शनिदेव की महादशा में उन्हीं की अन्तर्दशा रहती हैं तो ये समय यदि 30 वर्ष की आयु अवस्था के पश्चात आये तो व्यक्ति को शुरूआत में ही भूमि संबंधी स्थायित्व देकर जाती हैं। इसी समय में गति के साथ चलते हुए कार्यों कि प्रगति को थोड़े से ब्रेक लगने लगते हैं और वहीं से उलझने का वास्तविक खेल शुरू होता हैं। हम जब लगातार अपने कार्यों में सफल होते हैं तो स्वयं को सिरमौर समझने लगते हैं और जब एक से दो बार बिना किसी कारण विलम्ब आता हैं तो व्यक्ति अपने रास्ते बदलने लगता हैं और बदले हुए रास्तों में कई बार ऐसी गफलतें आने लगती हैं कि मालूम नहीं चलता कहां जाना था और कहां चले गये। दूसरी ओर यहीं से व्यक्ति अपने प्रयत्नों पर विश्वास करें तथा चलता रहें तो मार्ग प्रशस्त होने लगता हैं।
बुध की अन्तर्दशा जब प्रवेश करती हैं तो व्यक्ति मानसिक स्तर पर कुण्ठित महसूस करता हैं। आपने अर्थ लाभ के लिए परिवर्तन किये, लाभ मिले भी किंतु संघर्ष भी मिलें, हताशाएं मिली तो वहीं मानसिक स्तर पर जितना खुद को हम सुदृढ़ करते हैं उतना ही इस अन्तर्दशा में दूरगामी परिणाम देख पाते हैं। ये कुछ वैसा ही हैं कि आप पहली कक्षा में पढ़ रहे बच्चे के लिए अगले ही वर्ष नौकरी के सपने नहीं संजोते वरन् 17-18 वर्षों कि नींव लगाने का प्रयास करते हैं और ये प्रयास विश्वास के साथ दूरगामी परिणाम देते हैं।
जब केतु अंतर्दशा में आते हैं और यकिन मानिये किसी भी अंतर्दशा आयें वहां मिल रहें मौकों के साथ आप लोभ को हटा दें क्या मिलना हैं उस प्रक्रिया से दूर हो जायें और उस समय मिल रहे कर्म को खुद के साथ जोड़ दें तो जीवन का मार्ग नये द्वार खोल देता हैं।
जब शुक्र की अंतर्दशा आती हैं तो इन वर्षों में कोई नये कार्य कि शुरूआत नहीं करना, एक उलझन से बचने के लिए दूसरी उलझन को निमंत्रण नहीं देना, भौतिकता के शुरूआती चमक के साथ आगे जो घोर अंधकार मिलता हैं उसका व्यक्ति अंदाजा नहीं लगा पाता। जब समय सही नहीं हैं या यूं कहूं कि हमारे हक में नहीं हैं तो फिर रूक जाना ही बेहतर हैं।
इसके बाद सूर्य की अंतर्दशा एक तरह से पिता पुत्र के और आदर्श शत्रुओं के साथ चलती हैं यहां कर्म आध्यात्मिक चिंतन लेकर आता हैं। सूर्य और शनिदेव दोनों ही ग्रह व्यक्ति को भौतिकता से कर्म के फल से दूर हटाकर बस कर्म करना हैं ये शिक्षा देते हैं। हारे हुए व्यक्ति को पुनः जाग्रत करती हैं। मन के भीतर विरोधाभास आते हैं किंतु ये विश्वास हो जाता हैं कि हम भीतर के परम् तत्व के साथ जुड़कर चलते चले जायेगें।
चन्द्रमा की दशा फिर से मानसिक तौर पर व्यक्ति को विचलित करती हैं और यहां जुझारूपन में कमी आने लगती हैं किंतु यहां प्रत्येक व्यक्ति को अपना शत्रु मानने से बचना चाहिए तथा शिव आराधना में जुटे रहना चाहिए।
इसके बाद मंगल की अन्तर्दशा सही गलत के मानसिक संघर्ष देती हैं किंतु जिस कार्य की नींव यहां लग जाये और साथ में साढ़ेसाती चल रही हो या फिर ढ़ैय्या का अंतराल ही क्यांे ना हो आप समझ लिजिये कि जीवन में आर्थिक वृद्धि का नया माध्यम खोज लिया हैं।
राहू की अन्तर्दशा अंतर्चेतनाओं को प्रभावित करती हैं तथा कुछ एक धोखे खा लेने के बाद हर एक व्यक्ति को संशय के कटघरे में खड़े करके देखना आदत में शुमार हो जाता हैं। उस से भी बचने की पूर्ण आवश्यकताएं होनी चाहिए। इस समय में भी गणपति आराधना, शिव उपासना तथा चन्द्रशेखरष्टकम का श्रवण करना हितगामी हैं।
बृहस्पति की अंतर्दशा जो शनिदेव की महादशा में अनुभव मिलते हैं उसका उत्कर्ष लेकर आती हैं। यहां से बुध अपनी महादशा के साथ इंतजार कर रहे होते हैं तथा व्यक्ति वाणिज्य के आधिपति की इस दशा में पूरे अनुभव के साथ प्रवेश करता हैं। यहीं से क्या अच्छा हैं और क्या बुरा पीछे छूटने लगता हैं और जीवन की स्वाभाविकता प्रवेश करने लगती हैं।
Bht bht dhanyvaad guruji
ReplyDeleteSIR
ReplyDeleteNAMASTE, 🙏🙏🙏.
What I say!
I heard that if we are honest ,clean and with helping hands to needy person in our life, shani maharaj also help us .
am I right?
Thank you sir aapki digyi knowledge very helpful
ReplyDeletePranaam
ReplyDeleteShanidev ko naman... Wo bahut kuch sikha ke jaate hain..
ReplyDeletePranam guru g
ReplyDeleteMeri shani ki hi mahadasha chal rahi h or brihaspati ki antardasha
Zindagi khtam si ho gai h meri
Pranam Sir, meri Shani Mahadsha hay 2008, se. our 2014. Se Incom band hai,
ReplyDeleteशनि महादशा में शुक्र अंतर्दशा और उसमे विभिन्न पर्तयंतर दशा के प्रभाव भी बताएं please
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