मेष लग्न की कुण्ड़ली में चतुर्थ भाव में बृहस्पति का होना .Jupiter in 4th house in Aries ascendant horoscope




                                         मेष लग्न की कुण्ड़ली में चतुर्थ भाव में बृहस्पति

मेष लग्न के साथ बृहस्पति के 12 ही भावों के साथ चल रही इस यात्रा में चतुर्थ भाव में देवगुरु का होना सबसे प्रमुख आधार है, क्योंकि यहां कालपुरूष की कुण्ड़ली के अनुसार चतुर्थ भाव हृदय स्थान है और हृदय में देवगुरु का होना शीतलता को देता है। पंचमहापुरूष योगों में से एक योग हंस योग बृहस्पति के उच्चस्थ हो जाने की वजह से ये योग सामने आता है। आप यहां ये भी गौर करेंगे कि यहां देवगुरु का होना व्यक्ति को कर्म और ज्ञान की प्राप्ति से मानसिक सुख को देने वाला होता है। माता स्थान के साथ में जुड़ाव भी बढ़ता चला जाता है। चतुर्थ भाव के बृहस्पति व्यक्ति को सामाजिक सरोकार से भी जोड़ने वाले होते है। तो वहीं वाहन सुख तथा जिस उम्र में जो सुख मिलने चाहिए, वो भी मिलने वाले होते है। अष्टम भाव पर निक्षेपित होने वाली दृष्टि रिसर्च की ओर बढ़ाती है, तो वहीं दूसरी ओर अष्टम भाव पर 5वीं दृष्टि और द्वादश भाव पर 9वीं दृष्टि विदेश संबंधित भावनाओं पर भी व्यक्ति जीवन में उन्नति देती है। 

जैसे-जैसे जीवन का अनुभव बढ़ता है वैसे ही प्रगति भी बढ़ती है। भाग्येश का चतुर्थ भाव में होना, प्रमुखतया यहां जीवन को भाग्य से भी सुख देता है तथा वहां से प्रगति सुनिश्चित होती है। हालांकि यदि बृहस्पति वक्री हो जाएं, राहु के नक्षत्र लिए हुए हो तो ऐसे परिणाम नहीं मिल पाते है। 

व्यक्ति कम खर्चे वाला होता है। हृदय शांत रहता है, व्यक्तिगत जीवन का प्रबंधन बहुत बेहतर तरीके से साथ चलने वाला होता है। भीतर की संवेदनाएं और दूसरों की वेदनाएं समझने की ताकत भी बहुत अच्छे से मिलती है। 


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