सलाह (Advice) का महत्व

 सलाह किस तरह से बिगड़े काम बना देती है और किस तरह से बने हुए काम आसानी से बिगाड़ सकती है। इसको एक उदाहरण से समझते हैं। आपको एक व्यक्ति विशेष के साथ टेलीफोनिक वार्ता करनी थी, बिजनेस डीलिंग को लेकर, जिससे लम्बे समय से आपकी चर्चाएं चल रही थी कुछ महीनों पहले संघर्ष आए और रिश्ते बिगड़ गए। 

 आपके एक व्यापारिक पार्टनर ने सलाह दी कि जब तुम उस व्यक्ति से बात करो तो पूरी जोश के साथ करना, गुस्से में बात नहीं करना। डोमिनेट होकर चलना। कहीं पर भी तुमको नीचा देखने की आवश्यकताएं नहीं है क्योंकि हम गलती के भीतर नहीं थे और वहीं आप उससे बातचीत करते हैं, वही स्थिति को दोहराते हैं वो व्यक्ति आपसे जुडऩा चाह रहा था किन्तु इस वार्तालाप की वजह से वो दूर हट गया। 

वहीं दूसरे स्तर के ऊपर एक और सलाहकार आपके सामने आता है, कहता है कि जो बीता उसको बिसारते हैं। एक बार फिर से नई शुरुआत करते हैं। तुम गुस्सा बिलकुल मत दिखाना, बहुत आराम से मिलना, अपनी बात को बहुत अच्छे से रखना और उसके बाद में वह क्या कहता है सुनना, हो सकता है कि कम्युनिकेशन गेप हो। आपने सही किया और वह जो व्यक्ति आपके साथ में पचास पैसे का काम करने वाला था, उसने उस स्थिति को और ज्यादा बढ़ा दिया। एक लेवल के ऊपर बेनिफिट निकल कर आया तो यही समय की सारी ही गुंजाइशें हैं जब हम ग्रहीय व्यवस्थाओं  के आधार पर आपको यह कहते हैं कि अभी संभलकर चलने की आवश्यकता है, अभी सजगता की आवश्यकता है तो वहीं से आप अपने आधे काम को सरल कर देते हैं।

 जब दुगुनी रफ्तार के साथ चलने को कहा जाए और वहां पर आप अपनी रफ्तार बढ़ा देते हैं तो वहां पर भी व्यक्ति अपनी संभावनाओं को एक असीमित दायरे के साथ में लेकर चलते हैं तो यही सलाह का महत्व है। यही ग्रहीय व्यवस्था के साथ में देखे जाने वाले समय का विशेष महत्व है।

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