ध्यान: एक आध्यात्मिक अनुभव

 


एक शब्द है- ध्यान। मेडिटेशन ।

 प्रत्येक व्यक्ति ने अपने जीवन स्तर में कहीं न कहीं सुना है कि दिन की शुरुआत में या फिर जब हम रात्रि में विश्राम की ओर अग्रसर हो रहे हो तो मेडिटेशन करना चाहिए। ध्यान लगाना चाहिए। इसे करने से एकाग्रता बढ़ती है। मन के भीतर विचारों का प्रवाह तो लगातार रहता है किन्तु जो  गति है उसमें एक स्थिरता आने लगती है और हम जब भी ध्यान की ओर जाते हैं तो ये महसूस होता है कि भटकाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है या फिर कई बार व्यक्ति को यह लगता है कि मैं अगर ध्यान करने बैठता हूं तो ज्यादा विचलित हो उठता हूं किन्तु वो एक शुरुआती स्तर की स्थिति है। अगर आप इसको लम्बे समय तक जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं तो वास्तविक स्तर के ऊपर एक स्थिरता आने लगती है। चित्त में चेतना का वास होने लगता है।

इसको एक उदाहरण के साथ में समझा जाए तो आप देखिये कि एक व्यक्ति खेल में बहुत ज्यादा महारथ हासिल कर चुका है उसने अपनी जो स्किल्स है उस पर बहुत ज्यादा फोकस एप्रोच में चलने का प्रयास किया है । एक महानुभाव गायन के साथ में जुड़े रहे उन्होंने अभ्यास के समय बाकी सारी ही स्थितियों से तारत्म्य और नाता दूर किया।  रियाज के समय स्वर-सुधा के साथ जुड़ते चले गए तो वहां एक नई स्थिति को उन्होंने महसूस किया। 

एक व्यक्ति ने लम्बे समय तक नौकरी में अनुभव लिया और उसे यह कहा गया कि इनका फोकस जॉब के  साथ में बहुत अच्छा है। यह डीपर सेंस में कुछ और नई वस्तुस्थितियां निकालकर लेकर आते हैं, क्योंकि जब उन्होंने अपनी नौकरी की शुरुआत की, उसी समय से उनका ध्यान अपने कामकाज में बहुत अधिक था। ये ध्यान की वास्तविक परिभाषा के  जैसा ही है बच्चों को कहा जाता है कि ध्यान से पढ़ाई करो ध्यान से सुनो यही एक एप्रोच है जिसके साथ में व्यक्ति अपने मन के भीतर जो लगातार मिनिमाइज और मैक्सीमाइज होती हुई स्किल्स है, उसे थोड़ा-सा हटाने का प्रयास कर सकता है और खुद के प्रवाह को एक सिमेटरी में लेकर आ सकता है। ये जो समय अंतराल हमें मिला है, अगर हम शुरुआत करना चाहते हैं ध्यान की और अपने मन को एक केन्द्र के साथ में जोडऩा चाहते हैं, चित्त के साथ में जोडऩा चाहते हैं तो हम इस नए दिन की शुरुआत के साथ नए महीने की शुरुआत के साथ में अपनाने का कार्य कर सकते हैं।

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