बुध पारे की प्रकृति के ग्रह हैं और पारा एक ऐसा धातु जो कोई एक स्थिर आकार के साथ नहीं रहता जिस पात्र में हो उसी घुमाव को अपना बना लेता हैं। आज के जीवन में भले ही भौतिक युग की बात करें या आध्यात्म चेतना की जिस व्यक्ति ने खुद की सेाच को ढ़ालना सीख लिया तेजी से परिवर्तन को जीवन का नियम बना दिया तथा आप कई बार ये पाएगें कि वैचारिक विद्रोह एक अलग बात हैं किंतु किसी व्यक्ति विशेष के साथ वाणी के माध्यम से चलने वाले एक अलग बात हैं इसको एक उदाहरण से समझते हैं। आप किसी व्यक्ति विशेष से चर्चा कर रहें हैं और वो चर्चा आपकी सहमति के साथ नहीं चल रही हैं तो विचारों का विद्रोह मन में घुलता हैं तथा वाणी कंठ में से सज धज कर निकल कर निकलते हुए एक विद्रोह उत्पन्न करती हैं और तर्क कुतर्क में बदलने लगते हैं, वर्षों के रिश्ते रिसने लग जाते हैं।
बुध जब भी व्यक्ति की कुण्डली में षष्ठ भाव, अष्टम भाव और कुछ हद तक जब द्वादश भाव में विराजित होते हैं तो ऐसा विद्रोह बहुत जल्दी सामने आता हैं किंतु जब हमने अपनी प्रकृति को जान लिया जैसे कि एक व्यक्ति कहता है कि मुझे गुस्सा बहुत जल्दी आता हैं उसे ज्ञात हैं कि ये मेरा अवगुण हैं और ये अवगुण विकार दे रहा हैं तो अब उस पर कार्य करने की आवश्यकता हैं हालांकि गुस्से का सीधा संबंध मंगल से हैं और यहां मैं चर्चा आपके सम्मुख बुध की रख रहा था तो बुद्धि व्यक्ति को व्यावहारिक, तार्किक और हाल ही के समय में घट रही घटनाओं में धैर्य को साथ रखते हुए निर्णय में गलती नहीं होने देती।
आपने सांचा तो देखा होगा कई वस्तुओं को ढ़ालकर आकार देना सांचे का काम हैं, भीतर उत्पन्न हुए विचार बुद्धि के कौनसे सांचे में जा रहे हैं उसी आकार के साथ जीवन नव श्वास पाता हैं और जब भी हम किसी के द्वारा ढ़ाले गए विचार जबरदस्ती उड़ेले गए तो वहां क्या होगा वो भी सांचे में ढ़लने का कार्य करेगा किंतु विकृत स्वरूप से।
मैं सफलता की कई परिभाषाएं अलग अलग लोगों से सुनता आया हूं, समझता चला हूं और अंततोगत्वा यही ज्ञात होता हैं कि सफलता के कोई तय मानक नहीं। प्रत्येक व्यक्ति के मनोदशा की चाबी जिस तरह अलग हैं और ये बात मनोविज्ञान का छात्र भली भांति जानता हैं उसी तरह सफलता का भी कोई निश्चित सिद्धांत नहीं हैं, सिर्फ इतना ही एक स्तर हैं जो ये बताता हैं कि आप अपने कर्म में स्वाभाविक रहें, आधुनिक युग की भाषा में कहूं तो थोड़ा सा flexible रहें और ये बात हमेशा ध्यान रखें कि परिवर्तन को नही स्वीकारने वाला व्यक्ति जीवन में उलझन को बढ़ाता चला जाता हैं। कब, क्यों, कैसे जीवन नहीं हैं किस तरह से इस तरह की ओर बढ़ना जीवन हैं और जीवन आनंद भी हैं।
Very true ji
ReplyDeleteजी धन्यवाद
DeleteSarah niya such jise hm apni life m smahit karne ka safal prayas krte h.
ReplyDeleteजी धन्यवाद
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ReplyDeleteIT S REAL THIGHS
ReplyDelete👌👌👏👏👏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteजी धन्यवाद
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