इन तीनों ही शब्दों को आप अगर क्रम से हटाकर जोड़ने का प्रयास करेगें तो हो सकता हैं कि आप में से कोई प्रार्थना को पहले स्थान दे, प्रयास को उसके बाद और प्रतीक्षा को सबसे अंत में रखे ये भी संभव हैं किंतु हम सिर्फ प्रार्थना और प्रतीक्षा को ही साथ जोड़ें और प्रयासों के सिरे को अंत में रखें, तब भी बात वहां नहीं पहुंचेगी जिस बात के साथ कर्म को जोड़ते हुए हम सभी को पहुंचना हैं।
जब व्यक्ति किसी भी कार्य में प्रयास करने लगता हैं तो उस कार्य के पूर्ण होने की आस भी साथ में जगती हैं। यही आस प्रार्थना का प्रारम्भिक स्वरूप हैं। हम प्रयासों को जब किसी व्यक्ति के साथ आंकने से दूर हटते हैं और उन प्रयासों के साथ स्वयं के भीतर झांकने लगते हैं तो वहीं से प्रयास मन की सकारात्मकता का आवरण ओढ़ते हैं और यहीं से सफलता कि या यूं कह लिजिए मंजिल को प्राप्त करने की पहली सीढ़ी दिखाई देने लगती हैं। जब व्यक्ति खुद के मन से जुड़े अन्यथा किसी और व्यक्ति के मन से उसी सिरे के साथ श्रद्धा का भाव जन्म लेता हैं और जहां श्रद्धा जन्म लेती हैं वहां व्यक्ति को झुकने की आवश्यकता नहीं रह जाती। स्वतः नतमस्तक हो जाता हैं प्रखर से प्रखर व्यक्तित्व और जब व्यक्ति झुकना सीख ले, प्रयास को पहला विश्वास बना ले तो प्रार्थना भीतर की अनुगुंज बन जाती हैं। आप ने महसूस किया होगा कि भंवरे के गुंजन में एक तारतम्य हैं और यही स्तर प्रार्थना के भी हैं। पूरी चेष्टाओं के साथ प्रयास कीजिए और प्रार्थनाओं का तारतम्य मन के भीतर उतरने दीजिए, उस स्तर पर पहुंच कर जो व्यक्ति स्वयं को प्रतीक्षा का उन्मुक्त गगन दे देता है वहां प्रयास विफल नहीं होते। ये विचार जब हम भीतर तक आत्मसात कर लें कि प्रयास सकारात्मक कर्म हैं, प्रार्थना सकारात्मकता के सिवाय जुड़ाव देती ही नहीं हैं। साथ में ही प्रतीक्षा रूपी धीरज का वृक्ष जब वटवृक्ष बनता हैं तो उसकी छाव में ना जाने कितनी नन्ही कोपलें सफल होने का अरमान जगाती हैं। तो शुरूआत कीजिए प्रयास के साथ, प्रार्थना में श्रद्धावनत होकर…
जब व्यक्ति किसी भी कार्य में प्रयास करने लगता हैं तो उस कार्य के पूर्ण होने की आस भी साथ में जगती हैं। यही आस प्रार्थना का प्रारम्भिक स्वरूप हैं। हम प्रयासों को जब किसी व्यक्ति के साथ आंकने से दूर हटते हैं और उन प्रयासों के साथ स्वयं के भीतर झांकने लगते हैं तो वहीं से प्रयास मन की सकारात्मकता का आवरण ओढ़ते हैं और यहीं से सफलता कि या यूं कह लिजिए मंजिल को प्राप्त करने की पहली सीढ़ी दिखाई देने लगती हैं। जब व्यक्ति खुद के मन से जुड़े अन्यथा किसी और व्यक्ति के मन से उसी सिरे के साथ श्रद्धा का भाव जन्म लेता हैं और जहां श्रद्धा जन्म लेती हैं वहां व्यक्ति को झुकने की आवश्यकता नहीं रह जाती। स्वतः नतमस्तक हो जाता हैं प्रखर से प्रखर व्यक्तित्व और जब व्यक्ति झुकना सीख ले, प्रयास को पहला विश्वास बना ले तो प्रार्थना भीतर की अनुगुंज बन जाती हैं। आप ने महसूस किया होगा कि भंवरे के गुंजन में एक तारतम्य हैं और यही स्तर प्रार्थना के भी हैं। पूरी चेष्टाओं के साथ प्रयास कीजिए और प्रार्थनाओं का तारतम्य मन के भीतर उतरने दीजिए, उस स्तर पर पहुंच कर जो व्यक्ति स्वयं को प्रतीक्षा का उन्मुक्त गगन दे देता है वहां प्रयास विफल नहीं होते। ये विचार जब हम भीतर तक आत्मसात कर लें कि प्रयास सकारात्मक कर्म हैं, प्रार्थना सकारात्मकता के सिवाय जुड़ाव देती ही नहीं हैं। साथ में ही प्रतीक्षा रूपी धीरज का वृक्ष जब वटवृक्ष बनता हैं तो उसकी छाव में ना जाने कितनी नन्ही कोपलें सफल होने का अरमान जगाती हैं। तो शुरूआत कीजिए प्रयास के साथ, प्रार्थना में श्रद्धावनत होकर…
Pranam vaibhav vyaas ji. Bahut Achcha likha aapane bahut hi Sundar likha hai, bahut bahut dhanyvad.
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार
DeleteExcellent sir
ReplyDeleteजी धन्यवाद
DeleteJai shree Krishna guru g, Nice sir g Nice.
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteप्रतीक्षा रूपी धीरज का वृक्ष जब वटवृक्ष बनता हैं तो उसकी छाव में ना जाने कितनी नन्ही कोपलें सफल होने का अरमान जगाती हैं।, वाहः प्रणाम🙏 🌟🌹🌟
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deletejay ho guru g ki
ReplyDeleteजी नमस्कार
DeleteDo you reside in Jodhpur Sir?
ReplyDeleteजी
Deleteकाव्यात्मक सरस शब्दावली में सुन्दर मार्गदर्शन 👏👏
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार
Deleteजी धन्यवाद
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