आंवला नवमी की पूजा से सुख-समृद्धि का स्थायी वास || Vaibhav Vyas


 आंवला नवमी की पूजा से सुख-समृद्धि का स्थायी वास

कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को अक्षय नवमी, धात्री नवमी और कूष्मांडा नवमी भी कहते हैं। इसीलिए मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन जो भी शुभ काम किया जाए उसमें हमेशा बरकत होती है, उसका क्षय कभी नहीं होता। इसलिए इस दिन की पूजा से अक्षय फल का वरदान मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका धार्मिक महत्व ये भी है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था और द्वापर युग की शुरुआत हुई थी। वृंदावन की परिक्रमा की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। इस दिन पूजा का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त शुक्रवार की सुबह 06 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगा।

आंवला नवमी के दिन स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें पूजन की सामग्री के साथ आंवला के पेड़ के पास जाएं। आंवला के जड़ के पास साफ सफाई कर जल और कच्चा दूध अर्पित करें। जो भी पूजन सामग्री हो उससे आंवला के वृक्ष की पूजा करें। आंवला के वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या मौली लपेंटे मौली लपटने के क्रम में वृक्ष की 8 परिक्रमा करें, कई स्थानों पर 108 परिक्रमा करने का भी विधान है। आंवला नवमी की कथा श्रवण-पाठन का भी विशेष महत्व होता है इसलिए स्वयं वाचन-पाठन कर सकें तो उत्तम अन्यथा किसी योग्य ब्राह्मण से भी इसका श्रवण किया जा सकता है, जिससे सुख-समृद्धि का स्थायी वास होने लगता है।

आंवला नवमी की कथा- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक राजा रोजाना सवा मन आंवला दान करने के बाद ही भोजन करता था। जिसके कारण उसे आंवल्या राजा कहा जाने लगा। लेकिन आंवले का दान करना उसके पुत्र और पुत्रवधु को रास नहीं आया। वो सोचने लगे की राजा ऐसे आंवले का दान करेगा तो सारा खजाना खाली हो जाएगा। राजा के पुत्र ने उसे ऐसा करने से रोका, इससे दुखी होकर राजा ने रानी के साथ महल छोडऩे का फैसला लिया और जंगल चले गए। जंगल में प्रण के अनुसार राजा ने बिना आंवला दान किए 7 दिनों तक भोजन नहीं किया। राजा की तपस्या और दृढ़ता को देख भगवान खुश हुए और राजा के महल बाग बगीचे जंगल के बीचोंबीच ही खड़े हो गए. उधर राजा के पुत्र और पुत्र वधु का राजपाट दुश्मनों ने छीन लिया। आखिर में दोनों को अपनी भुल का एहसास हुआ और वो राजा और रानी के पास वापस आ गए।

इसीलिए इस दिन की गई पूजा-अर्चना और व्रत से दैनिन्दिन समस्याओं से मुक्ति मिलकर अक्षय शुभ लाभ बना रहता है।

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